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________________ २९८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद नैरयिक जीव ने पापकर्म बांधा था ? गौतम ! पहला और दूसरा भंग । इसी प्रकार कृष्ण, नील, और कापोतलेश्या वाले जीव में भी प्रथम और द्वितीय भंग । इसी प्रकार कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, ज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, अज्ञानी, मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी, विभंगज्ञानी, आहार यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्त, सवेदी, नपुंसकवेदी, सकषायी यावत् लोभकषायी, सयोगी, तीन योग काययोगी, साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त, इन सब पदों में प्रथम दो भंग कहना । असुरकुमारों को यही कहना । विशेष यह है कि इनमें तेजोलेश्या वाले स्त्रीवेदक और पुरुषवेदक अधिक कहना । इन सबमें पहला और दूसरा भंग जानना । इसी प्रकार स्तनितकुमार तक कहना । इसी प्रकार पृथ्वीकायिक, अप्कायिक से पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक तक भी सर्वत्र प्रथम और द्वितीय भंग कहना, विशेष यह है कि जहाँ जिसमें जो लेश्या, जो दृष्टि, ज्ञान, अज्ञान, वेद और योग हों, उसमें वही कहना । मनुष्य में जीवपद समान कहना । वाणव्यन्तर असुरकुमार समान है | ज्योतिष्क और वैमानिक में भी इसी प्रकार है, किन्तु जिसके जो लेश्या हो, वही कहना । [९७९] भगवन् ! क्या जीव ने ज्ञानावरणीय कर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा? गौतम ! पापकर्म के समान ज्ञानावरणीय कर्म कहना, परन्तु जीवपद और मनुष्यपद में सकषायी यावत् लोभकषायी में प्रथम और द्वितीय भंग ही कहना । यावत् वैमानिक तक कहना । ज्ञानावरणीयकर्म के समान दर्शनावरणीयकर्म कहना । - भगवन् ! क्या जीव ने वेदनीयकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न | गौतम ! किसी जीव ने बांधा था, बांधता है और बांधेगा, किसी जीव ने बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा तथा किसी जीव ने बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा । सलेश्य जीव में भी तृतीय भंग को छोड़ कर शेष तीन भंग । कृष्णलेश्या वाले से लेकर पद्मलेश्या वाले में पहला और दूसरा भंग है । शुक्ललेश्या वाले में तृतीय भंग को छोड़कर शेष तीन भंग हैं । अलेश्यजीव में अन्तिम भंग है । कृष्णपाक्षिक में प्रथम और द्वितीय भंग। शुक्लपाक्षिक और सम्यग्दृष्टि में तृतीय भंग को छोड़ कर शेष तीनों भंग । मिथ्यादृष्टि और सम्यगमिथ्यादृष्टि में प्रथम और द्वितीय भंग । ज्ञानी में तृतीय भंग को छोड़कर शेष तीनों भंग । आभिनिबोधिकज्ञानी से लेकर मनःपर्यवज्ञानी तक में प्रथम और द्वितीय भंग । केवलज्ञानी में तृतीय भंग के सिवाय शेष तीनों भंग । इसी प्रकार नोसंज्ञोपयुक्त में, अवेदी में, अकषायी में, साकारोपयुक्त एवं अनाकारोपयुक्त में तृतीय भंग को छोड़कर शेष तीनों भंग । अयोगी में अन्तिम भंग और शेष सभी में प्रथम और द्वितीय भंग जानना । भगवन् ! क्या नैरयिक जीव ने वेदनीयकर्म बांधा, बांधता है और बांधेगा ? इत्यादि । इसी प्रकार नैरयिक से वैमानिक तक जिसके जो लेश्यादि हों, वे कहना । इन सभी में पहला और दूसरा भंग है । विशेष यह है कि मनुष्य की वक्तव्यता सामान्य जीव के समान है । भगवन् ! क्या जीव ने मोहनीयकर्म बांधा था ? गौतम ! पापकर्मबन्ध के समान समग्र कथन मोहनीयकर्मबन्ध में यावत् वैमानिक तक कहना । [९८०] भगवन् ! क्या जीव ने आयुष्यकर्म बांधा था, इत्यादि प्रश्न । गौतम ! किसी जीव ने बांधा था, इत्यादि चारों भंग है । सलेश्य से लेकर यावत् शुक्ललेश्यी जीवों तक में चारों भंग पाए जाते हैं । अलेश्य जीवों में एकमात्र अन्तिम भंग होता है ।
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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