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________________ भगवती-२५/-/४/८९१ २७३ स्कन्ध प्रदेशार्थ से अनन्तगुणे । उनसे निष्कम्पक अनन्तप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से अनन्तगुणे । उनसे निष्कम्पक अनन्त-प्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थ से अनन्तगुणे । उनसे देशकम्पक अनन्तप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से अनन्तगुणे । उनसे देशकम्पक अनन्त-प्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थ से अनन्तगुणे । उनसे सर्वकम्पक असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से असंख्यातगुणे । उनसे सर्वकम्पक असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थ से असंख्यातगुणे । उनसे सर्वकम्पक संख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से असंख्यातगुणे । उनसे सर्वकम्पक संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थ से असंख्यातगुणे । उनसे देशकम्पक संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से असंख्यातगुणे । उनसे देशकम्पक संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से असंख्यातगुणे । उनसे देशकम्पक संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थ से असंख्यातगुणे । उनसे देशकम्पक असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से असंख्यातगुणे । उनसे देशकम्पक असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थ से असंख्यातगुणे । उनसे निष्कम्पक परमाणुपुद्गलद्रव्यार्थ-अप्रदेशार्थ रूप से असंख्यातगुणे । उनसे निष्कम्पक संख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से संख्यातगुणे । उनसे निष्कम्पक संख्यातप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थ से संख्यातगुणे । उनसे निष्कम्पक असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से असंख्यातगुणे और उनसे निष्कम्पक असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थ से असंख्यातगुणे हैं । [८९२] भगवन् ! धर्मास्तिकाय के मध्य-प्रदेश कितने कहे हैं ? गौतम ! आठ । भगवन् ! अधर्मास्तिकाय के मध्य-प्रदेश कितने कहे हैं ? गौतम ! आठ । भगवन् ! आकाशास्तिकाय के मध्य-प्रदेश कितने कहे हैं ? गौतम ! आठ । भगवन् ! जीवास्तिकाय के मध्य-प्रदेश कितने कहे हैं ? गौतम ! आठ । भगवन् ! जीवास्तिकाय के ये आठ मध्यप्रदेश कितने आकाशप्रदेशों को अवगाहित कर सकते हैं ? गौतम ! वे जघन्य एक, दो, तीन, चार, पांच या छह तथा उत्कृष्ट आठ आकाशप्रदेशों में अवगाहित हो सकते हैं, किन्तु सात प्रदेशों में नहीं समाते । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।' | शतक-२५ उद्देशक-५ | [८९३] भगवन् ! पर्यव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के जीवपर्यव और अजीवपर्यव । यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का पर्यव पद कहना चाहिए । [८९४] भगवन् ! क्या आवलिका संख्यात समय की, असंख्यात समय की या अनन्त समय की होती है ? गौतम ! वह केवल असंख्यात समय की होती है । भगवन् ! आनप्राण संख्यात समय का होता है ? इत्यादि । गौतम ! पूर्ववत् । भगवन् ! स्तोक संख्यात समय का होता है ? इत्यादि । गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग, वर्षशत, वर्षसहस्त्र, लाख वर्ष, पूर्वांग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग, अटट, अववांग, अवव, हूहकांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग पद्म, नलिनांग, नलिन, अक्षनिपूरांग, अक्षनिपूर, अयुतांग, अयुत, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग, शीर्षप्रहेलिका, पल्योपम, सागरोपम, अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी, इन सबके भी समय (पूर्वोक्त) जानना । __ भगवन् पुद्गलपरिवर्तन संख्यात समय का होता है, असंख्यात समय का या अनन्त समय का होता है ? गौतम ! वह अनन्त समय का होता है । इसी प्रकार भूतकाल, 418
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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