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________________ २६२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद सम्पूर्ण अर्थ का कथन करना चाहिए । यह अनुयोग की विधि है । [८८०] भगवन् ! नैरयिक यावत् देव और सिद्ध इन पांचों गतियों के जीवों में कौन जीव किन जीवों से अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के बहुवक्तव्यता-पद के अनुसार तथा आठ गतियों के समुदाय का भी अल्पबहुत्व जानना । भगवन् ! सइन्द्रिय, एकेन्द्रिय यावत् अनिन्द्रिय जीवों में कौन जीव, किन जीवों से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के बहुवक्तव्यता-पद के अनुसार औधिक पद कहना चाहिए । सकायिक जीवों का अल्पबहुत्व भी औधिक पद के अनुसार जानना चाहिए । भगवन् ! इन जीवों और पुद्गलों, यावत् सर्वपर्यायों में कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! बहु वक्तव्यता पद अनुसार जानना । __ भगवन् ! आयुकर्म के बन्धक और अबन्धक जीवों में कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! बहुवक्तव्यता पद के अनुसार, यावत्-आयुकर्म के अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं तक कहना चाहिए । शतक-२५ उद्देशक-४ [८८१] भगवन् ! युग्म कितने कहे हैं ? गौतम ! युग्म चार प्रकार के कहे हैं, यथाकृतयुग्म यावत् कल्योज । भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! अठारहवें शतक के चतुर्थ उद्देशक में कहे अनुसार यहाँ जानना, यावत् इसीलिए ऐसा कहा है । भगवन् ! नैरयिकों में कितने युग्म कहे गये हैं ? गौतम ! उनमें चार युग्म कहे हैं । यथा-कृतयुग्म यावत् कल्योज । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? पूर्ववत् जानो । इसी प्रकार यावत् वायुकायिक पर्यन्त जानना । भगवन् ! वनस्पतिकायिकों में कितने युग्म कहे हैं ? गौतम ! वनस्पतिकायिक कदाचित् कृतयुग्म होते हैं यावत् कदाचित् कल्योज होते हैं । भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं ? गौतम ! उपपात की अपेक्षा ऐसा कहा है । द्वीन्द्रिय जीवों की वक्तव्यता नैरयिकों के समान है । इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए । सिद्धों का कथन वनस्पतिकायिकों के समान है । भगवन् ! सर्व द्रव्य कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! छह प्रकार के धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय यावत अद्धासमय (काल) । भगवन ! धर्मास्तिकाय क्या द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म यावत् कल्योज रूप है ? गौतम ! धर्मास्तिकाय द्रव्यार्थ रूप से कल्योज रूप है । इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय तथा आकाशास्तिकाय को समझना । भगवन् ! जीवास्तिकाय द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म है ? गौतम ! वह द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म है, किन्तु योज, द्वापरयुग्म या कल्योज नहीं है । भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वह द्रव्यार्थ रूप से कदाचित् कृतयुग्म है, यावत् कदाचित् कल्योज रूप है । अद्धा-समय का कथन जीवास्तिकाय के समान है । भगवन् ! धर्मास्तिकाय प्रदेशार्थरूप से कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! कृतयुग्म है, किन्तु त्र्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज नहीं है । इसी प्रकार यावत् अद्धा-समय तक जानना चाहिए । भगवन् ! धर्मास्तिकाय यावत् अद्धासमय, इन षट् द्रव्यों में द्रव्यार्थरूप से यावत् विशेषाधिक है ? गौतम ! इन सबका अल्पबहुत्व बहुवक्तव्यतापद अनुसार समझना चाहिए ।
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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