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________________ २५८ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद है । युग्म प्रदेशिक घनवृत्तसंस्थान जघन्य बत्तीस प्रदेशों वाला और बत्तीस आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है, उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशों वाला और असंख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ है । [८७२ ] भगवन् ! त्र्यस्त्रसंस्थान कितने प्रदेश वाला और कितने आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ कहा गया है ? गौतम ! त्र्यस्त्रसंस्थान दो प्रकार का घनत्र्यस्त्र और प्रतरस्त्र्यस्त्र । उनमें से जो प्रतरत्र्यस्त्र है, वह दो प्रकार- ओज- प्रदेशिक और युग्म- प्रदेशिक । ओज - प्रादेशिक जघन्य तीन प्रदेश वाला और तीन आकाशप्रदेशों में तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशों वाला और असंख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है । उनमें से जो घनत्र्यस्त्र है, वह दो प्रकार काओज- प्रदेशिक और युग्म प्रदेशिक । ओज- प्रदेशिक घनत्र्यस्त्र जघन्य पैंतीस प्रदेशों वाला और पैंतीस आकाशप्रदेशों में तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशिक और असंख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है । युग्म प्रदेशिक घनत्र्यस्त्र जघन्य चार प्रदेशों वाला और चार आकाशप्रदेशों में तथा उत्कृष्ट अनन्त- प्रदेशिक और असंख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है । समान, भगवन् ! चतुरस्त्रसंस्थान कितने प्रदेशवाला, कितने प्रदेशों में अवगाढ़ होता है ? गौतम ! चतुरस्त्रसंस्थान दो प्रकार का घन चतुरस्त्र और प्रतरचतुरस्त्र, इत्यादि, वृत्तसंस्थान के उनमें से प्रतर- चतुरस्त्र के दो भेद-ओज- प्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक कहना । यावत् ओज- प्रदेशिक प्रतर - चतुरस्त्र जघन्य नौ प्रदेश वाला और नौ आकाशप्रदेशों में तथा उत्कृष्ट अनन्त- प्रदेशिक और असंख्येय आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है । युग्म प्रदेशिक प्रतरचतुरस्त्र जघन्य चार प्रदेश वाला और चार आकाशप्रदेशों में तथा उत्कृष्ट अनन्त - प्रदेशिक और असंख्येय प्रदेशों में अवगाढ़ होता है । घन - चतुरस्त्र दो प्रकार का - ओज- प्रदेशिक और युग्म- प्रदेशिक । ओज- प्रदेशिक घन-चतुरस्त्र जघन्य सत्ताईस प्रदेशों वाला और सत्ताईस आकाशप्रदेशों में तथा उत्कृष्ट अनन्त- प्रदेशिक और असंख्येय आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है । युग्म - प्रदेशिक घन-चतुरस्त्र जघन्य आठ प्रदेशों वाला और आठ आकाशप्रदेशों में तथा उत्कृष्ट अनन्तप्रदेशिक और असंख्येय आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ होता है । भगवन् ! आयतसंस्थान कितने प्रदेश वाला और कितने आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है ? गौतम ! आयतसंस्थान तीन प्रकार का - श्रेणी - आयत, प्रतर - आयत और घनआयत । श्रेणी - आयत दो प्रकार का - ओज- प्रदेशिक और युग्म- प्रदेशिक । ओज- प्रदेशिक वह जघन्य तीन प्रदेशों वाला और तीन आकाशप्रदेशों में तथा उत्कृष्ट अनन्त - प्रदेशिक और असंख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है । युग्म प्रदेशिक जघन्य दो प्रदेश वाला और दो आकाशप्रदेशों में तथा उत्कृष्ट अनन्तप्रदेशिक और असंख्यात - प्रदेशावगाढ़ होता है । प्रतरआयत दो प्रकार का - ओज- प्रदेशिक और युग्म प्रदेशिक । ओज- प्रदेशिक, जघन्य पन्द्रह आकाश-प्रदेशों में तथा उत्कृष्ट अनन्त- प्रदेशिक और असंख्येय आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है । जो युग्म-प्रदेशिक है, वह जघन्य छह प्रदेश वाला और छह आकाशप्रदेशों में उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशिक और असंख्येय आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ होता है । घन आयत है, दो प्रकार का - ओज- प्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक । जो ओज- प्रदेशिक है, वह जघन्य पैंतालीस प्रदेशों वाला और पैंतालीस आकाशप्रदेशों में उत्कृष्ट अनन्त- प्रदेशिक और असंख्यये आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है । युग्म- प्रदेशिक जघन्य बारह प्रदेशों वाला और बारह आकाशप्रदेशों में तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशिक और असंख्येय प्रदेशों में अवगाढ होता है |
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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