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________________ भगवती-२४/-/२१/८५७ २४७ की अपेक्षा से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट छह भव ग्रहण करते हैं तथा काल की अपेक्षा सेजघन्य वर्षपृथक्त्व अधिक अठारह सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक सत्तावन सागरोपम । इसी प्रकार नौ ही गमकों में जानना । विशेष यह है कि इनकी स्थिति, अनुबन्ध और संवेध भिन्न-भिन्न जानना । इसी प्रकार अच्युतदेव तक जानना । विशेष यह है कि इनकी स्थिति, अनुबन्ध और संवेध, भिन्न-भिन्न जानने । प्राणतदेव की स्थिति को तीन गुणी करने पर साठ सागरोपम, आरणदेव की स्थिति ६३ सागरोपम और अच्युतदेव की स्थिति छासठ ६६ सागरोपम की हो जाती है । भगवन् ! यदि वे मनुष्य कल्पातीत-वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या ग्रैवेयक-कल्पातीत देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा अनुत्तरौपपातिक देवों से ? गौतम ! दोनों प्रकार के कल्पातीत देवों से । यदि वे ग्रैवेयक-कल्पातीत देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे अधस्तन-अधस्तन ग्रैवेयक-कल्पातीत देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् उपरितन-उपरितन ग्रैवेयक से ? गौतम ! वे अधस्तन-अधस्तन यावत् उपरितन-उपरितन ग्रैवेयककल्पातीत देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! ग्रैवेयक देव कितने काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य वर्षपृथक्त्व की और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है । शेष आनतदेव के समान जानना। विशेष यह है कि हे गौतम ! उसके एकमात्र भवधारणीय शरीर होता है । अवगाहना-जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट दो रत्नि की होती है । केवल भवधारणीय शरीर समचतुरस्त्रसंस्थान से युक्त कहा गया है । पाँच समुद्घात पाये जाते हैं । यथा-वेदनासमुद्घात यावत् तैजस-समुद्घात । किन्तु उन्होंने वैक्रिय-समुद्घात और तैजस-समुद्घात कभी किये नहीं, करते भी नहीं, और करेंगे भी नहीं । स्थिति और अनुबन्ध जघन्य बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट इकतीस सागरोपम होता है । कालादेश से जघन्य वर्षपृथक्त्व-अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि-अधिक ९३ सागरोपम । शेष आठों गमकों में भी इसी प्रकार जानना । परन्तु स्थिति और संवेध भिन्न समझना । भगवन् ! यदि वे (मनुष्य), अनुत्तरौपपातिक कल्पातीत-वैमानिकों से आकार उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे विजय यावत् सर्वार्थसिद्ध वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे विजय यावत् सर्वार्थसिद्ध अनुत्तर विमानवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं । भगवन ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव कितने काल की स्थितिवाले मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं । गौतम ! ग्रैवेयक देवों के अनुसार कहना । अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक रत्नि। सम्यग्दृष्टि होते हैं, ज्ञानी होते हैं, नियम से तीन ज्ञान होते हैं, यथा-आमिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान । स्थिति जघन्य इकतीस सागरोपम की और उत्कृष्ट ३३ सागरोपम की होती है । भवादेश से वे जघन्य दो भव और उत्कृष्ट चार भव करते हैं | कालादेश से-जघन्य वर्षपृथक्त्व अधिक इकतीस सागरोपम और उत्कृष्ट दो पूर्वकोटि अधिक छ्यासठ सागरोपम । इसी प्रकार शेष आठ गमक कहना । विशेष यह कि इनके स्थिति, अनुबन्ध और संवेध भिन्न-भिन्न जानना । भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध देव कितने काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) वही विजयादि देव-सम्बन्धी वक्तव्यता कहना । इनकी स्थिति अजघन्य-अनुत्कृष्ट
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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