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________________ २४० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद भगवन् ! अधःसप्तमपृथ्वी का नैरयिक, कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है ?, इत्यादि प्रश्न । गौतम ! पूर्वोक्त सूत्र के अनुसार इसके भी नौ गमक कहने चाहिए । विशेष यह है कि यहाँ अवगाहना, लेश्या, स्थिति और अनुबन्ध भिन्न-भिन्न जानने चाहिए । संवेध-भव की अपेक्षा से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट छह भव, तथा काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम । प्रथम के छह गमकों में जघन्य दो भव और उत्कृष्ट छह भव तथा अन्तिम तीन गमकों में जघन्य दो भव और उत्कृष्ट चार भव जानना । नौ ही गमकों में प्रथम गमक के समान वक्तव्यता कहना । परन्तु दूसरे गमक में स्थिति की विशेषता है तथा काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहर्त अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन अन्दमुहूर्त अधिक ६६ सागरोपम । तीसरे गमक में जगन्य पूर्वकोटि अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम, चौथे गमक में जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक छासठ सागरोपम, पांचवें गमक में जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक २२ सागरोपम और उत्कृष्ट तीन अन्तमुहर्त अधिक ६६ सागरोपम, छठे गमक में जघन्य पूर्वकोटि अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम तथा सातवें गमक में जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक ३३ सागरोपम और उत्कृष्ट दो पूर्वकोटि अधिक ३६ सागरोपम, आठवें गमक में जघन्य अन्तमुहर्त अधिक ३३ सागरोपम और उत्कृष्ट दो अन्तमुहर्त अधिक ६६ सागरोपम, तथा नौवें गमक में जघन्य पूर्वकोटि अधिक ३३ सागरोपम और उत्कृष्ट दो पूर्वकोटि-अधिक ६६ सागरोपम गमनागमन करता है । यदि वह तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होता है तो क्या एकेन्द्रिय-तिर्यञ्च योनिकों से आकर उत्पन्न होता है ? पृथ्वीकायिक-उद्देशक अनुसार उपपात समझना । यावत्-भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होता है । गौतम ! जघन्य अन्तमुहर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की । भगवन् ! वे पृथ्वीकायिक जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? यहाँ परिमाण से लेकर अनुबन्ध तक, अपने-अपने स्वस्थान में जो वक्तव्यता कही है, तदनुसार ही पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में भी कहनी चाहिए । विशेष यह है कि नौ ही गमकों में परिमाणजघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं, ऐसा जानना । (संवेध-) नौ ही गमकों में भव की अपेक्षा से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करते हैं । शेष पूर्ववत् । कालादेश से दोनों पक्षों की स्थिति को जोड़ने से (काल) संवेध जानना चाहिए । भगवन् ! यदि वह अप्कायिक जीवों से आकर उत्पन्न हो तो ? पूर्ववत् अप्काय के सम्बन्ध में कहना । इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय तक उपपात कहना; परन्तु सर्वत्र अपनी-अपनी वक्तव्यता कहना | नौ ही गमकों में भव की अपेक्षा से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव तथा कालादेश से दोनों की स्थिति को जोड़ना । पृथ्वीकायिकां में उत्पन्न होने वाले की वक्तव्यता सभी जीवों के सम्बन्ध में कहनी चाहिए । सर्वत्र स्थिति और संवेध यथायोग्य भिन्न-भिन्न जानना । ___ भगवन् ! यदि (वे पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च), पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी से ? गौतम !
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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