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________________ २३२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद गमक में काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तमुहूर्त अधिक ८८ हजार वर्ष । सातवें गमक में काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक सात हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख सोलह हजार वर्ष तक गमनागमन करता है । आठवें गमक में काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक सात हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तमुहूर्त अधिक २८ हजार वर्ष तक । नौवें गमक में भवादेश से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है तथा काल की अपेक्षा से जघन्य उनतीस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख सोलह हजार वर्ष; इतन काल तक गमनागमन करता है । इस प्रकार नौ ही गमकों में अप्कायिक की स्थिति जानना । भगवन ! यदि वह तेजस्कायिक से आकर उत्पन्न होता हो तो ? इत्यादि प्रश्न । तेजस्कायिकों के विषय में भी यही वक्तव्यता कहनी चाहिए । विशेष यह है कि नौ ही गमकों में तीन लेश्याएँ होती हैं । तेजस्काय का संस्थान सूचीकलाप के समान होता है । इसकी स्थिति (तीन अहोरात्र की) जाननी चाहिए । तीसरे गमक में काल की अपेक्षा जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट बारह अहोरात्र अधिक ८८,००० वर्ष; इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है । इसी प्रकार संवेध भी उपयोग रख कर कहना । (भगवन् !) यदि वे वायुकायिकों से आकर उत्पन्न हों तो ? वायुकायिकों के विषय में तेजस्कायिकों की तरह नौ ही गमक कहने चाहिए । विशेष यह है कि वायुकाय का संस्थान पताका के आकार का होता है । संवेध हजारों वर्षों से कहना चाहिए । तीसरे गमक में काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष । इस प्रकार उपयोगपूर्वक संवेध कहना चाहिए । भगवन् ! यदि वे वनस्पतिकायिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो ? अप्कायिकों के गमकों के समान वनस्पतिकायिकों के नौ गमक कहने । वनस्पतिकायिकों का संस्थान अनेक प्रकार का होता है । उनके शरीर की अवगाहना इस प्रकार कही गई है-प्रथम के तीन गमकों और अन्तिम तीन गमकों में जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट सातिरेक एक हजार योजन की होती है । बीच के तीन गमकों में अवगाहना पृथ्वीकायिकों के समान समझना । इसकी संवेध और स्थिति जान लेनी चाहिए । तृतीय गमक में काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष, उत्कृष्ट एक लाख अट्ठाईस हजार वर्ष । इस प्रकार उपयोगपूर्वक संवेध भी कहना । .. ८४७] भगवन् ! यदि वे द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न हों तो क्या पर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से ? गौतम ! वे पर्याप्त तथा अपर्याप्त द्वीन्द्रियों से भी आकर उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! जो द्वीन्द्रिय जीव पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वालोमें। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वे जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । सेवार्तसंहनन वाले होते हैं । अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट बारह योजन की होती है । संस्थान हुंडक होता है 1 लेश्याएं तीन और दृष्टियाँ दो-सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि होती है । दो ज्ञान या दो अज्ञान अवश्य होते हैं । वे मनोयोगी नहीं होते, वचनयोगी और
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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