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________________ २२० आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव, एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! असंज्ञी के समान समझना । भगवन् ! उन जीवों के शरीर किस संहनन वाले होते हैं ? गौतम ! छहों प्रकार के, यथा- वे वज्रऋषभनाराचसंहनन वाले, यावत् सेवार्त्तसंहनन वाले होते हैं । शरीर की अवगाहना, असंज्ञी के समान जानना । भगवन् ! उन जीवों के शरीर किस संस्थान वाले होते हैं ? गौतम ! छहों प्रकार के, यथा- समचतुरस्त्र यावत् हुण्डक संस्थान । भगवन् ! उन जीवों 1 कितनी लेश्याएँ कही गई हैं ? गौतम ! छहों लेश्याएँ । यथा - कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । ( उनमें ) दृष्टियाँ तीनों ही होती हैं । तीन ज्ञान तथा तीन अज्ञान भजना से होते हैं । योग तीनों ही होते हैं । शेष सब यावत् अनुबन्ध तक असंज्ञी के समान समझना । 'विशेष यह है कि समुद्घात आदि के पांच होते हैं तथा वेद तीनों ही होते हैं । शेष पूर्ववत् । यावत्भगवन् ! वह पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रियतर्यिञ्चयोनिक जीव, रत्नप्रभापृथ्वी में नारकरूप में उत्पन्न हो और यावत् गमनागमन करता है ? गौतम ! भव की अपेक्षा जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव तक ग्रहण करता है तथा काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम काल तक । भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव रत्नप्रभापृथ्वी में जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट दोनो दस हजार वर्ष की स्थिति वाले में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् प्रथम गमक पूरा, यावत् काल की अपेक्षा जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चालीस हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि काल तक । यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति में उत्पन्न हो तो जघन्य और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले में उत्पन्न होता है । शेष परिमाणादि से लेकर भवादेशपर्यन्त कथन उसी पूर्वोक्त प्रथम गमक के समान, यावत् काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम काल तक । भगवन् ! जघन्यकाल की स्थिति वाला, पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी - पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक, जो रत्नप्रभापृथ्वी में नैरयिकरूप में उत्पन्न होने वाला हो, तो वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव (एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?) गौतम ! प्रथम गमक के समान विशेषता इन आठ विषयों में है, यथा -- शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व की होती है । इनमें आदि की तीन लेश्याएँ होती हैं । एकमात्र मिथ्यादृष्टि होते हैं । इनमें नियम से दो अज्ञान होते हैं । आदि के तीन समुद्घात होते हैं । आयुष्य, अध्यवसाय और अनुबन्ध का कथन असंज्ञी के समान । शेष सब प्रथम गमक समान, यावत् काल की अपेक्षा जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तमुहूर्त अधिक चार सागरोपम काल । जघन्य काल की स्थिति वाला, वही जीव, जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले तथा उत्कृष्ट भी दस हजार वर्ष की स्थिति वालो में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव (एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?) इत्यादि प्रश्न । गौतम ! यहाँ सम्पूर्ण कथन चतुर्थ गमक के समान, यावत्-काल की अपेक्षा से - जघन्य अन्तमुहूर्त
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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