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________________ भगवती-२४/-/१/८३८ २१७ भी हैं । भगवन् ! वे जीव स्त्रीवेदक हैं, पुरुषवेदक हैं या नपुंसकवेदक हैं ? गौतम ! वे न तो स्त्रीवेदक होते हैं और न ही पुरुषवेदक होते हैं, किन्तु नपुंसकवेदक हैं । भगवन् ! उन जीवों के कितने काल की स्थिति कही है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि । भगवन् ! उन जीवों के कितने अध्यवसाय-स्थान कहे हैं ? गौतम ! असंख्यात हैं ? भगवन् ! उनके वे अध्यवसाय-स्थान प्रशस्त होते हैं या अप्रशस्त होते हैं ? गौतम ! वे प्रशस्त भी होते हैं और अप्रशस्त भी होते हैं । भगवन् ! वे जीव पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकरूप में कितने काल तक रहते हैं ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि रहते हैं । भगवन् ! वे जीव पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जीव हों, फिर रत्नप्रभापृथ्वी में नैरयिकरूप से उत्पन्न हों और पुनः (उसी) पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक हों, यों कितना काल सेवन करते हैं और कितने काल तक गति-आगति करते हैं ? गौतम ! भवादेश से दो भव और कालादेश से जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग । __ भगवन् ! पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जीव, जो जघन्यकाल-स्थिति वाले रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य हों, तो हे भगवन् ! वे कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट दोनो दस हजार वर्ष की स्थिति वालो में भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्वकथित वक्तव्यता, यावत् अनुबन्ध । भगवन् ! वे जीव पर्याप्त-असंज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक हों, फिर जघन्य काल की स्थिति वाले रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हों और पुनः पर्याप्तअसंज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक हों तो यावत् कितने काल तक गतिआगति करते हैं ? गौतम ! भवादेश से दो भव ग्रहण करते हैं, और कालादेश से जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटि । भगवन् ! पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जीव, रत्नप्रभा में उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य हो, तो वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट दोनो पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वालोमें । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! पूर्ववत् जानना । भगवन् ! वह जीव, पर्याप्त, असंज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक हो, फिर उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो और पुनः पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक हो तो वह यावत् गमनागमन करता रहता है ? गौतम ! भवादेश से दो भव ग्रहण करता है और काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहर्त अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग तथा उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग । भगवन् ! जघन्य स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जीव जो रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य हो, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ।। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! पूर्ववत् समझना । विशेषतः आयु, अध्यवसाय और अनुबन्ध, इन तीन बातों में अन्तर है,
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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