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________________ भगवती - २१/१/-/८२२ २१३ शतक - २२ [८२२] इस शतक में छह वर्ग हैं- ताल, एकास्थिक, बहुबीजक, गुच्छ, गुल्म और ल्ल । प्रत्येक वर्ग के १०-१० उद्देशक होने से, सब मिला कर साठ उद्देशक हैं । शतक - २२ वर्ग - १ [८२३] राजगृह नगर में यावत् पूछा- भगवन् ! ताल, तमाल, तक्कली, तेतली, शाल, सरल, सारगल्ल, यावत्- केतकी, कदली, चर्मवृक्ष, गुन्दवृक्ष, हिंगवृक्ष, लवंगवृक्ष, पूगफल, खजूर और नारियल, इन सबके मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? ( गौतम !) शालिवर्ग के दश उद्देशकों के समान यहाँ भी समझना । विशेष यह है कि इन वृक्षों के मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा और शाखा, इन पांचों अवयवों में देव आकर उत्पन्न नहीं होते, इसलिए इन पांचों में तीन लेश्याएँ होती हैं, शेष पांच में देव उत्पन्न होते हैं, इसलिए उनमें चार लेश्याएँ होती हैं । पूर्वोक्त पांच की स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की होती है, अन्तिम पांच की स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट वर्ष - पृथक्त्व की होती है । मूल और कन्द की अवगाहना धनुष - पृथक्त्व की और स्कन्ध, त्वचा एवं शाखा की गव्यूति पृथक्त्व की होती है । प्रवाल और पत्र की अवगाहना धनुष - पृथक्त्व की होती है । पुष्प की हस्तपृथक्त्व की और फल तथा बीज की अंगुल - पृथक्त्व की होती है । इन सबकी जघन्य अवगाहना अंगुल की असंख्यातवें भाग की होती है । शेष शालिवर्ग के समान । शतक - २२ वर्ग - २ [८२४] भगवन् ! नीम, आम्र, जम्बू, कोशम्ब, ताल, अंकोल्ल, पीलु, सेलु, सल्लकी, मोचकी, मालुक, बकुल, पलाश, करंज, पुत्रंजीवक, अरिष्ट, बहेड़ा, हरितक, भिल्लामा, उम्बरिय, क्षीरणी, धातकी, प्रियाल, पूतिक, निवाग, सेण्हक, पासिय, शीशम, अतसी, पुन्नाग, नागवृक्ष, श्रीपर्णी और अशोक, इन सब वृक्षों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ तालवर्ग के समान मूल आदि दस उद्देशक कहना । शतक - २२ वर्ग-३ [८२५] भगवन् ! अगस्तिक, तिन्दुक, बोर, कवीठ, अम्बाडक, बिजौरा, बिल्व, आमलक, फणस, दाड़िम, अश्वत्थ, उंबर, बड़, न्यग्रोध, नन्दिवृक्ष, पिप्पली, सतर, प्लक्षवृक्ष, काकोदुम्बरी, कुस्तुम्भरी, देवदालि, तिलक, लकुच, छत्रोघ, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोध्रक, धव, चन्दन, अर्जुन, नीप, कुटज और कदम्ब, इन सब वृक्षों के मूलरूप से जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ प्रथम तालवर्ग के सदृश कहना । शतक - २२ वर्ग-४ [८२६] भगवन् ! बैंगन, अल्लइ, बोंडइ इत्यादि वृक्षों के नाम प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद की गाथा के अनुसार जानना चाहिए, यावत् गंजपाटला, दासि अंकोल्ल तक, इन सभी वृक्षों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम !
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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