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________________ १८८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद निर्वृत्ति कही गई है । इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना चाहिए । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के संस्थाननिवृत्ति कितनी है ? गौतम ! उनके एकमात्र मसूर चन्द्र-संस्थान-निवृत्ति कही गई है । इसी प्रकार जिसके जो संस्थान हो, तदनुसार निवृत्ति वैमानिकों तक कहनी चाहिए । भगवन् ! संज्ञानिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! चार प्रकार कीआहारसंज्ञानिवृत्ति यावत् परिग्रह-संज्ञानिवृत्ति । इस प्रकार वैमानिकों तक, (संज्ञानिवृत्ति का कथन करना चाहिए ।) भगवन् ! लेश्यानिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! छह प्रकार कीकृष्णलेश्यानिवृत्ति यावत् शुक्ललेश्यानिवृत्ति । इस प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जिसके जितनी लेश्याएँ हों, उतनी ही लेश्यानिवृत्ति कहनी चाहिए । भगवन् ! दृष्टिनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! तीन प्रकार कीसम्यग्दृष्टिनिवृत्ति, मिथ्यादृष्टिनिवृत्ति और सम्यगमिथ्यादृष्टिनिर्वृत्ति । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त जिसके जो दृष्टि हो, (तदनुसार दृष्टिनिवृत्ति कहना चाहिए ।) भगवन् ! ज्ञाननिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! ज्ञान-निवृत्ति पांच प्रकार की कही गई है, यथा-आभिनिबोधिकज्ञान-निवृत्ति, यावत् केवलज्ञान-निवृत्ति । इस प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़ कर जिसमें जितने ज्ञान हों, तदनुसार उसमें उतनी ज्ञाननिर्वृत्ति (कहनी चाहिए ।) गौतम ! अज्ञाननिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! तीन प्रकार की मति-अज्ञाननिर्वृत्ति, श्रुत-अज्ञाननिवृत्ति और विभंगज्ञाननिर्वृत्ति । इस प्रकार वैमानिकों पर्यन्त, जिसके जितने अज्ञान हों, (तदनुसार अज्ञाननिवृत्ति कहनी चाहिए ।) ___भगवन् ! योगनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! तीन प्रकार कीमनोयोगनिवृत्ति, वचनयोगनिवृत्ति और काययोगनिवृत्ति । इस प्रकार वैमानिकों तक जिसके जितने योग हों, (तदनुसार उतनी योगनिर्वृत्ति कहनी चाहिए ।) भगवन् ! उपयोगनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! दो प्रकार की साकारोपयोग-निवृत्ति और अनाकारोपयोग-निवृत्ति । इस प्रकार उपयोगनिवृत्ति वैमानिकों पर्यन्त (कहना चाहिए ।) [७७१] १. जीव, २. कर्म प्रकृति, ३. शरीर, ४. सर्वेन्द्रिय, ५. भाषा, ६. मन, ७. कषाय । तथा [७७२] ८. वर्ण, ९. गंध, १०. स्स, ११. स्पर्श, १२. संस्थान, १३. संज्ञा, १४. लेश्या, १५. दृष्टि, १६. ज्ञान, १७. अज्ञान, १८. उपयोग और १९. योग, (इन सबकी निवृत्ति का कथन इस उद्देशक में किया गया है ।) [७७३] हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । भगवन् ! यह इसी प्रकार है । | शतक-१९ उद्देशक-९ । [७७४] भगवन् ! करण कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का द्रव्यकरण, क्षेत्रकरण, कालकरण, भवकरण और भावकरण | भगवन् ! नैरयिकों के कितने करण हैं ? गौतम! पांच प्रकार के यथा-द्रव्यकरण यावत् भावकरण । वैमानिकों तक कहना । . भगवन् ! शरीरकरण कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! पांच प्रकार काऔदारिकशरीरकरण यावत् कार्मणशरीरकरण । इसी प्रकार वैमानिकों तक जिसके जितने शरीर हों उसके उतने शरीरकरण कहने चाहिए । भगवन् ! इन्द्रियकरण कितने प्रकार का कहा गया है ?
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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