SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती-१९/-/३/७६२ १८३ वायुकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है । उससे पर्याप्तक सूक्ष्म वायुकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है । उससे पर्याप्त सूक्ष्म अग्निकायिक की जघन्य, अपर्याप्त सूक्ष्म अग्निकायिक की उत्कृष्ट तथा पर्याप्त सूक्ष्म अग्निकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी एवं विशेषाधिक है। उससे पर्याप्त सूक्ष्म अप्कायिक की जघन्य, अपर्याप्त सूक्ष्म अप्कायिक की उत्कृष्ट तथा पर्याप्त सूक्ष्म अप्कायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी एवं विशेषाधिक है । इसी प्रकार से उससे पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक की जघन्य, उससे अपर्याप्तसूक्ष्म पृथ्वीकायिक की उत्कृष्ट तथा उससे पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यगुणी तथा विशेषाधिक होती है । उससे पर्याप्त बादर वायुकायिक की जघन्य, अपर्याप्त बादर वायुकायिक की उत्कृष्ट एवं पर्याप्त बादर वायुकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी तथा विशेषाधिक है । उससे पर्याप्त बादर अग्निकायिक की जघन्य, अपर्याप्त बादर अग्निकायिक की उत्कृष्ट एवं पर्याप्त बादर अग्निकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यगुणी एवं विशेषाधिक है । इसी प्रकार उससे पर्याप्त बादर अप्कायिक की जघन्य, अपर्याप्त बादर अप्कायिक की उत्कृष्ट एवं पर्याप्त बादर अप्कायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी एवं विशेषाधिक है । उससे पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक की जघन्य, अपर्याप्त बादरपृथ्वीकायिक की उत्कृष्ट तथा पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी तथा विशेषाधिक है । उससे पर्याप्त बादर निगोद की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । अपर्याप्त बादर निगोद की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है, और पर्याप्त बादर निगोद की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है । उससे पर्याप्त प्रत्येकशरीरी बादर वनस्पतिकायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । उससे अपर्याप्त प्रत्येकशरीरी बादर वनस्पतिकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी है और उससे पर्याप्त प्रत्येकशरीरी बादर वनस्पतिकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी है । [७६३] भगवन् ! पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक, इन पाँचों में कौन-सी काय सब से सूक्ष्म है और कौन-सी सूक्ष्मतर है । गौतम ! वनस्पतिकाय सबसे सूक्ष्म है, सबसे सूक्ष्मतर है । भगवन् ! पृथ्वीकायिक यावत् वायुकायिक, इन चारों में से कौन-सी काय सबसे सूक्ष्म है और कौन-सी सूक्ष्मतर है ? गौतम ! वायुकाय सब-से सूक्ष्म है, वायुकाय ही सबसे सूक्ष्मतर है । भगवन् ! पृथ्वीकायिक यावत् अग्निकायिक, कौन सी काय सबसे सूक्ष्म है, कौन-सी सूक्ष्मतर है ? गौतम ! अग्निकाय सबसे सूक्ष्म है, अग्निकाय ही सर्वसूक्ष्मतर है । भगवन् ! पृथ्वीकायिक और अप्कायिक इन दोनों में से कौन-सी काय सबसे सूक्ष्म है, कौन-सी सर्वसूक्ष्मतर है ? गौतम ! अप्काय सबसे सूक्ष्म और सर्वसूक्ष्मतर है। भगवन् ! इन पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक में से कौनसी काय सबसे बादर है, कौन-सी काय सर्वबादरतर है ? गौतम ! वनस्पतिकाय सर्वबादर है, वनस्पतिकाय ही सबसे अधिक बादर है । भगवन् ! पृथ्वीकायिक यावत् वायुकायिक, इन चारो में से कौन-सी काय सबसे बादर है, कौन-सी बादरतर है ? गौतम ! पृथ्वीकाय सबसे बादर है, पृथ्वीकाय ही बादरतर है । भगवन् ! अप्काय, तेजस्काय और वायुकाय इन तीनों में से कौन-सी काय सर्वबादर है, कौन-सी बादरतर है ? गौतम ! अप्काय सर्वबादर है, अप्काय ही बादरतर है । भगवन् ! अग्निकाय और वायुकाय, इन दोनों कायों में से कौन-सी काय सबसे बादर है, कौन-सी बादरतर है ? गौतम अग्निकाय
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy