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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद [७३८] भगवन् ! जो नैरयिक मर कर अन्तर- रहित पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, भगवन् ! वह किस आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है ? गौतम ! वह नारक नैरयिकआयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है, और पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक के आयुष्य के उदयाभिमुख करके रहता है । इसी प्रकार मनुष्यों में उत्पन्न होने योग्य जीव के विषय में समझना । विशेष यह है कि वह मनुष्य के आयुष्य को उदयाभिमुख करके रहता है । भगवन् ! जो असुरकुमार मर कर अन्तररहित पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य है, उसके विषय में पूर्ववत् प्रश्न है । गौतम ! वह असुरकुमार के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है। और पृथ्वीकायिक के आयुष्य को उदयाभिमुख करके रहता है । इस प्रकार जो जीव जहाँ उत्पन्न होने के योग्य है, वह उसके आयुष्य को उदयाभिमुख करता है, और जहाँ रहा हुआ है, वहाँ के आयुष्य का वेदन करता है । इस प्रकार वैमानिक तक जानना चाहिए । विशेष यह है कि जो पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिकों में ही उत्पन्न होने योग्य है, वह अपने उसी पृथ्वीकायिक के आयुष्य का वेदन करता है और अन्य पृथ्वीकायिक के आयुष्य को उदयाभिमुख करके रहता है । इसी प्रकार मनुष्य तक स्वस्थान में उत्पाद के विषय में कहना चाहिए । परस्थान में उत्पाद के विषय में पूर्वोक्तवपत् समझना चाहिए । [७३९] भगवन् ! दो असुरकुमार, एक ही असुरकुमारावास में असुरकुमार रूप से उत्पन्न हुए, उनमें से एक असुरकुमार देव यदि वह चाहे कि मैं ऋजु रूप से विकुर्वणा करूंगा; तो वह ऋजु - विकुर्वणा कर सकता है और यदि वह चाहे कि मैं वक्र रूप में विकुर्वणा करूंगा, तो वह वक्र - विकुर्वणा कर सकता है । जब कि एक असुरकुमारदेव चाहता है कि मैं ऋजु-विकुर्वणा करूं, परन्तु वक्ररूप की विकुर्वणा हो जाती है और वक्ररूप की विकुर्वणा करना चाहता है, तो ऋजुरूप की विकुर्वणा हो जाती है । भगवन् ! ऐसा क्यों होता है ? गौतम ! असुरकुमार देव दो प्रकार के हैं, यथा- मायिमिथ्यादृष्टि - उपपन्नक और अमायिसम्यग्दृष्टि - उपपन्नक । जो मायिमिथ्यादृष्टि-उपपन्नक असुरकुमार देव है, वह ऋजुरूप की विकुर्वणा करना चाहे तो वक्ररूप की विकुर्वणा हो जाती है, यावत् वह विकुर्वणा नहीं कर पाता किन्तु जो अमायिसम्यग्दृष्टि - उपपन्नक असुरकुमारदेव है, वह रूप की विकुर्वणा करना चाहे तो ऋजुरुप कर सकता है, यावत् जो विकुर्वणा करना चाहता है, वह कर सकता है । १७० भगवन् ! दो नागकुमारों के विषय में पूर्ववत् प्रश्न है ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक के विषय में (जानना चाहिए ) । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के विषय में भी इसी प्रकार है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - १८ उद्देशक - ६ [ ७४०] भगवन् ! फाणित गुड़ कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श वाला कहा गया है ? गौतम ! इस विषय में दो नयों है, यथा-नैश्चयिक नय और व्यावहारिक नय । व्यावहारिक नय की अपेक्षा से फाणित-गुड़ मधुर रस वाला कहा गया है और नैश्चयिक नय की दृष्टि से गुड़ पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श वाला कहा गया है । भगवन् ! भ्रमर कितने वर्ण- गन्धादि वाला है ? इत्यादि प्रश्न ? गौतम ! व्यावहारिक नय से भ्रमर काला है और नैश्चयिक नय से भ्रमर पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श वाला है । भगवन् !
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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