SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती - १७/-/५/७०८ 'स्थान' पद के अनुसार, यावत्-मध्य भाग में ईशानावतंसक विमान है । वह ईशानावतंसक महाविमान साढ़े बारह लाख योजन लम्बा और चौड़ा है, इत्यादि यावत् दशवें शतक में कथित शक्रेन्द्र के विमान अनुसार ईशानेन्द्र से सम्बन्धित समग्र वक्तव्यता आत्मरक्षक देवों तक कहना चाहिए । ईशानेन्द्र की स्थिति दो सागरोपम से कुछ अधिक है । 'यह देवेन्द्र देवराज ईशान है, तक जानना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - १७ उद्देशक- ६ [ ७०९] भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी में मरण-समुद्घात करके सौधर्मकल्प में पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य हैं, वे पहले उत्पन्न होते हैं और पीछे आहार ग्रहण करते हैं, अथवा पहले आहार ग्रहण करते हैं और पीछे उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे पहले उत्पन्न होते हैं और पीछे पुद्गल ग्रहण करते हैं; अथवा पहले वे पुद्गल ग्रहण करते हैं और पीछे उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा गया ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों में तीन समुद्घात हैं, यथा-वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात । जब पृथ्वीकायिक जीव, मारणान्तिकसमुद्घात करता है, तब वह 'देश' से भी समुद्घात करता है और 'सर्व' से भी समुद्घात करता है । जब देश से समुद्घात करता है, तब पहले पुद्गल ग्रहण करता है और पीछे उत्पन्न होता है । जब सर्व से समुद्घात करता है, तब पहले उत्पन्न होता है और पीछे पुद्गल ग्रहण करता है । १५७ भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी में मरण-समुद्घात करके ईशानकल्प में पृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य हैं, वे पहले... ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! पूर्ववत् ईशानकल्प में पृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य जीवों के विषय में जानना चाहिए । इसी प्रकार यावत् अच्युतकल्प के पृथ्वीकायिक के विषय में समझना चाहिए | ग्रैवेयकविमान, अनुत्तरविमान और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के विषय में भी इसी प्रकार जानना । भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, शर्कराप्रभापृथ्वी में मरण-समुद्घात करके सौधर्मकल्प में पृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य है; इत्यादि प्रश्न रत्नप्रभापृथ्वी के पृथ्वीकायिक जीवों के उत्पाद अनुसार शर्कराप्रभा के पृथ्वीकायिक जीवों का उत्पाद ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक जानना । रत्नप्रभा के पृथ्वीकायिक जीवों के समान यावत् अधः सप्तमपृथ्वी में मरण - समुद्घात से समवहत जीव का ईषत्प्राग्भारापृथ्वी तक उत्पाद है। भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - १७ उद्देशक - ७ [ ७१० ] भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, सौधर्मकल्प में मरण-समुद्घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी में पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हैं, वे पहले उत्पन्न होते हैं और पीछे आहार (पुद्गल) ग्रहण करते हैं अथवा पहले आहार (पुद्गल ) ग्रहण करते हैं और पीछे उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के पृथ्वीकायिक जीवों यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी में उत्पाद कहा गया, उसी प्रकार सौधर्मकल्प के पृथ्वीकायिक जीवों का सातों नरक- पृथ्वीयों में यावत् अधः सप्तमपृथ्वी तक उत्पाद जानना चाहिए । इसी प्रकार सौधर्मकल्प के पृथ्वीकायिक जीवों के समान सभी कल्पों में, यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के पृथ्वीकायिक जीवों का सभी पृथ्वीयों में अधः सप्तमपृथ्वी तक उत्पाद जानना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy