SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती-१७/-/२/६९९ १५३ में भी स्थित होते हैं । भगवन् ! नैरयिक जीव, क्या धर्म में स्थित होते हैं ? इत्यादि प्रश्न 1 नैरयिक न तो धर्म में स्थित हैं और न धर्माधर्म में स्थित होते हैं, किन्तु वे अधर्म में स्थित हैं। इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों तक जानना चाहिए । भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव क्या धर्म में स्थित हैं ?...इत्यादि प्रश्न | गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव धर्म में स्थित नहीं हैं, वे अधर्म में स्थित है, और धर्माधर्म में भी स्थित हैं । मनुष्यों के विषय में जीवों के समान जानना चाहिए । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के विषय में नैरयिकों के समान जानना चाहिए । [७००] भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि (हमारे मत में) ऐसा है कि श्रमण पण्डित हैं, श्रमणोपासक बाल-पण्डित हैं और जिस मनुष्य ने एक भी प्राणी का दण्ड छोड़ा हुआ नहीं है, उसे 'एकान्त बाल' कहना चाहिए; तो हे भगवन् ! अन्यतीर्थिकों का यह कथन कैसे यथार्थ हो सकता है ? गौतम ! अन्यतीर्थिकों ने जो यह कहा है कि 'श्रमण पण्डित हैं...यावत् 'एकान्त बाल कहा जा सकता है, उनका यह कथन मिथ्या है । मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि श्रमण पण्डित हैं, श्रमणोपासक बाल-पण्डित हैं, परन्तु जिस जीव ने एक भी प्राणी के वध को त्यागा है, उसे 'एकान्त बाल' नहीं कहा जा सकता । - भगवन् ! क्या जीव बाल हैं, पण्डित हैं अथवा बाल पण्डित हैं । गौतम ! जीव बाल भी हैं, पण्डित भी हैं और बाल-पण्डित भी हैं । भगवन् ! क्या नैरयिक बाल हैं पण्डित हैं अथवा बालपण्डित हैं ? गौतम ! नैरयिक बाल हैं, वे पण्डित नहीं हैं और न बालपण्डित हैं । इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों तक (कहना चाहिए ।) भगवन् ! क्या पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव बाल हैं ? प्रश्न ! गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक बाल हैं और बाल-पण्डित भी हैं, किन्तु पण्डित नहीं हैं। मनुष्य, जीवों के समान हैं । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक नैरयिकों के समान (कहना चाहिए ।) [७०१] भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि प्राणातिपात, मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शन-शल्य में प्रवृत हुए प्राणी का जीव अन्य है और उस जीव से जीवात्मा अन्य है । प्राणातिपात-विरमण यावत् परिग्रह-विरमण में, क्रोधविवेक यावत् मिथ्यादर्शन-शल्य-त्याग में प्रवर्तमान प्राणी का जीव अन्य है और जीवात्मा उससे भिन्न है । औत्पत्तिकी बुद्धि यावत् पारिणामिकी बुद्धि में वर्तमान प्राणी का जीव अन्य है और जीवात्मा उस जीव से भिन्न है । अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा में वर्तमान प्राणी का जीव अन्य है और जीवात्मा उससे भिन्न है । उत्थान यावत् पराक्रम में वर्तमान प्राणी का जीव अन्य है, जीवात्मा उससे भिन्न है । नारक-तिर्यञ्च-मनुष्य-देव में वर्तमान प्राणी का जीव अन्य है, जीवात्मा अन्य है । ज्ञानावरणीय से लेकर अन्तराय कर्म में वर्तमान प्राणी का जीव अन्य है, जीवात्मा भिन्न है । इसी प्रकार कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या तक में, सम्यग्दृष्टि-मिथ्यादृष्टि-सम्यग्मिथ्यादृष्टि में, इसी प्रकार चक्षुदर्शन आदि चार दर्शनों में, आभिनिबोधिक आदि पांच ज्ञानों में, मति-अज्ञान आदि तीन अज्ञानों में, आहारसंज्ञादि चार संज्ञाओं में एवं औदारिकशरीररादि पांच शरीरों में तथा मनोयोग आदि तीन योगों में और साकारोपयोग में एवं निराकारोपयोग में वर्तमान प्राणी का जीव अन्य है और जीवात्मा अन्य है । भगवन् ! क्या यह सत्य है ? गौतम ! अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार कहते हैं, यावत् वे मिथ्या कहते हैं । हे गौतम ! मैं
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy