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________________ भगवती-१६/-/६/६८० १४७ स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में एक महान् चाँदी का ढेर, सोने का ढेर, रत्नों का ढेर अथवा वज्रों का ढेर देखता हुआ देखे, उस पर चढता हुआ चढ़े, अपने आपको उस पर चढ़ा हुआ माने, ऐसा स्वप्न देखकर तत्क्षण जागृत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सब दुखों का अन्त करता है । कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, एक महान तणराशि तथा तेजोनिसर्ग नामक पन्द्रहवें शतक के अनुसार यावत् कचरे का ढेर देखता हुआ देखे, उसे बिखेरता हुआ बिखेर दे, और मैंने बिखेर दिया है, ऐसा स्वयं को माने, ऐसा स्वप्न देख कर तत्काल जागृत हो तो वह यावत् सब दुःखों का अन्त करता है । ___ कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में, एक महान् सर-स्तम्भ, वीरण-स्तम्भ, वंशीमूलस्तम्भ अथवा वल्लीमूल-स्तम्भ को देखता हुआ देखे, उसे उखाड़ता हुआ उखाड़ फेंके तथा ऐसा माने कि मैंने इनको उखाड़ फेंका है, ऐसा स्वप्न देख कर तत्काल जाग्रत हो तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करता है । कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में, एक महान् क्षीरकुम्भ, दधिकुम्भ, घृतकुम्भ, अथवा मधुकुम्भ देखता हुआ देखे और उसे उठाता हुआ उठाए तथा ऐसा माने कि स्वयं ने उसे उठा लिया है, ऐसा स्वप्न देख कर तत्काल जाग्रत हो तो वह व्यक्ति उसी भव में सिद्ध, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करता है। कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, एक महान् सुरारूप जल का कुम्भ, सौवीर रूप जल कुम्भ, तेलकुम्भ अथवा वसा का कुम्भ देखता हुआ देखे, फोड़ता हुआ उसे फोड़ डाले तथा मैंने उसे स्वयं फोड़ डाला है, ऐसा माने, ऐसा स्वप्न देख कर शीघ्र जाग्रत हो तो वह दो भव में मोक्ष जाता है, यावत् सब दुःखों का अन्त कर डालता है । कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में, एक महान् कुसुमित पद्मसरोवर को देखता हुआ देखे, उसमें अवगाहन (प्रवेश) करता हुआ अवगाहन करे तथा स्वयं मैने इसमें अवगाहन किया है, ऐसा अनुभव करे तथा इस प्रकार का स्वप्न देखकर तत्काल जाग्रत हो तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है । कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, तरंगों और कल्लोलों से व्याप्त एक महासागर को देखता हुआ देखे, तथा तरता हुआ पार कर ले, एवं मैंने इसे स्वयं पार किया है, ऐसा माने, इस प्रकार का स्वप्न देख कर शीघ्र जाग्रत हो तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करता है । कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में, सर्वरत्नमय एक महाभवन देखता हुआ देखे, उसमें प्रविष्ट होता हुआ प्रवेश करे तथा मैं इसमें स्वयं प्रविष्ट हो गया हूँ, ऐसा माने, इस प्रकार का स्वप्न देख कर शीघ्र जाग्रत हो तो, वह उसी भव में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो जाता है, यावत् सर्वदुःखों का अन्त कर देता है । कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, सर्वरत्नमय एक महान् विमान को देखता हुआ देखता है, उस पर चढ़ता हुआ चढ़ता है, तथा मैं इस पर चढ़ गया हूँ, ऐसा स्वयं अनुभव करता है, ऐसा स्वप्न देखकर तत्क्षण जाग्रत होता है, तो वह व्यक्ति उसी भव में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो जाता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है । [६८१] भगवन् ! कोई व्यक्ति यदि कोष्ठपुटों यावत् केतकीपुटों को खोले हुए एक स्थान से दूसरे स्थान पर लेकर जाता हो और अनुकूल हवा चलती हो तो क्या उसका गन्ध बहता है अथवा कोष्ठपुट यावत् केतकीपुट वायु में बहता है ? गौतम ! कोष्ठपुट यावत् केतकीपुट नहीं बहते, किन्तु घ्राण-सहगामी गन्धगुणोपेत पुद्गल बहते हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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