SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती-१६/-/१/६६३ १३७ भगवन् ! लोहे की भट्ठी में से, लोहे को, लोहे की संडासी से पकड़कर एहरन पर रखते और उठाते हुए पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? गौतम ! जब तक लोहा तपाने की भट्ठी में से लोहे को संडासी से पकड़ कर यावत् रखता है, तब तक वह पुरुष कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी तक पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है । जिन जीवों के शरीर से लोहा बना है, संडासी बनी है, घन बना है, हथौड़ा बना है, एहरन बनी है, एहरन का लकड़ा बना है गर्म लोहे को ठंडे करने की उदकद्रोणी बनी है, तथा अधिकरणशला बनी है, वे जीव भी कायिकी आदि पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। [६६४] भगवन् ! जीव अधिकरणी है या अधिकरण है ? गौतम ! जीव अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है । भगवन् ! किस कारण से यह कहा जाता है ? गौतम ! अविरति की अपेक्षा जीव अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है । भगवन् नैरयिक जीव अधिकरणी है या अधिकरण है ? गौतम ! वह अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है । (सामान्य) के अनुसार नैरयिक के विषय में भी जानना चाहिए । इसी प्रकार वैमानिक तक जानना। भगवन् ! जीव साधिकरणी है या निरधिकरणी है ? गौतम ! जीव साधिकरणी है, निरधिकरणी नहीं है । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! अविरति की अपेक्षा जीव साधिकरणी है, निरधिकरणी नहीं है । इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना । भगवन् ! जीव आत्माधिकरणी है, पराधिकरणी है, या उभयाधिकरणी है ? गौतम ! जीव आत्माधिकरणी भी है, पराधिकरणी भी है और तदुभयाधिकरणी भी है । भगवन् ! ऐसा किस हेतु से कहा गया है ? अविरति की अपेक्षा । इसीप्रकार वैमानिक तक जानना । भगवन् ! जीवों का अधिकरण आत्मप्रयोग से होता है, परप्रयोग से निष्पन्न होता है, अथवा तदुभवप्रयोग से होता है ? गौतम ! जीवों का अधिकरण आत्मप्रयोग से भी निष्पन्न होता है, परप्रयोग से भी और तदुभयप्रयोग से भी निष्पन्न होता है । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा है ? गौतम ! अविरति की अपेक्षा से यावत् तदुभयप्रयोग से भी निष्पन्न होता है । इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा है । इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना। [६६५] भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के यथाऔदारिक यावत् कार्मण । भगवन् ! इन्द्रियां कितनी कही गई हैं ? गौतम पांच यथा-श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रिय । भगवन् ! योग कितने प्रकार के कहे गये हैं ? गौतम ! तीन प्रकार के यथामनोयोग, वचनयोग और काययोग । भगवन् ! औदारिकशरीर को बांधता हुआ जीव अधिकरणी है या अधिकरण है ? गौतम ! वह अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है । भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि वह अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है ? गौतम ! अविरति के कारण वह यावत् अधिकरण भी है । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, औदारिकशरीर को बांधता हुआ अधिकरणी है या अधिकरण है ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार मनुष्य तक जानना । इसी प्रकार वैक्रियशरीर के विषय में भी जानना । विशेष यह है कि जिन जीवों के शरीर हों, उनके कहना। __ भगवन् ! आहारकशरीर बांधता हुआ जीव अधिकरणी है या अधिकरण है ? गौतम ! वह अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! प्रमाद की अपेक्षा से । इसी प्रकार मनुष्य के विषय में जानना । तैजसशरीर का कथन औदारिकशरीर
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy