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________________ भगवती-१५/-/-/६५६ १३१ सर्वदुःखों का अन्त करेगा। भगवन् ! आप देवानुप्रिय का अन्तेवासी कौशलजनपदोत्पन्न सुनक्षत्र नामक अनगार, जो प्रकृति से भद्र यावत् विनीत था, वह मंखलिपुत्र गोशालक द्वारा अपने तप-तेज से परितापित किये जाने पर काल के अवसर पर काल करके कहाँ गया ? कहाँ उत्पन्न हुआ ? गौतम ! वह ऊपर चन्द्र और सूर्य को यावत् आनत-प्राणत और आरण-कल्प का अतिक्रमण करके वह अच्युतकल्प में देवरूप में उत्पन्न हुआ है । वहाँ सुनक्षत्र देव की स्थिति बाईस सागरोपम की है । शेष सभी वर्णन सर्वानुभूति अनगार के समान, यावत्-सभी दुःखों का अन्त करेगा । [६५७] भगवन् ! देवानुप्रिय का अन्तेवासी कुशिष्य गोशालक मंखलिपुत्र काल के अवसर में काल करके कहाँ गया, कहाँ उत्पन्न हुआ ? हे गौतम ! वह ऊँचे चन्द्र और सूर्य का यावत् उल्लंघन करके अच्युतकल्प में देवरूप में उत्पन्न हुआ है । वहाँ गोशालक की स्थिति भी बाईस सागरोपम की है। भगवन् ! वह गोशालक देव उस देवलोक से आयुष्य, भव और स्थिति का क्षय होने पर, देवलोक से च्यव कर यावत् कहाँ उत्पन्न होगा? गौतम ! इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में विन्ध्यपर्वत के पादमूल में, पुण्ड्र जनपद के शतद्वार नामक नगर में सन्मूर्ति नाम के राजा की भद्रा-भार्या की कुक्षि में पुत्ररूप से उत्पन्न होगा । वह वहाँ नौ महीने और साढ़े सात रात्रिदिवस यावत् भलीभांति व्यतीत होने पर यावत् सुन्दर बालक के रूप में जन्म लेगा । जिस रात्रि में उस बालक का जन्म होगा, उस रात्रि में शतद्वार नगर के भीतर और बाहर, अनेक भार-प्रमाण और अनेक कुम्भप्रमाण पद्मों एवं रत्नों की वर्षा होगी । तब उस बालक के माता-पिता ग्यारह दिन बीत जाने पर बारहवें दिन उस बालक का गुणयुक्त एवं गुणनिष्पन्न नामकरण करेंगे क्योंकि हमारे इस बालक का जब जन्म हुआ, तब पद्मों और रत्नों की वर्षा हुई थी, इसलिए हमारे इस बालक का नाम-'महापद्म' हो । तत्पश्चात् उस महापद्म बालक के माता-पिता उसे कुछ अधिक आठ वर्ष का जान कर शुभ तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र और मुहूर्त में बहुत बड़े राज्याभिषेक से अभिषिक्त करेंगे । इस प्रकार वह वहाँ का राजा बन जाएगा । -वह महाहिमवान् आदि पर्वत के समान महान् एवं बलशाली होगा, यावत् वह (राज्यभोग करता हुआ) विचरेगा । किसी समय दो महर्द्धिक यावत् महासौख्यसम्पन्न देव उस महापद्म राजा का सेनापतित्व करेंगे । वे दो देव इस प्रकार हैं-पूर्णभद्र और माणिभद्र । यह देख कर शतद्वार नगर के बहुत-से राजेश्वर, तलवर, राजा, युवराज यावत् सार्थवाह आदि परस्पर एक दूसरे को बुलायेंगे और कहेंगे-देवानुप्रियो ! हमारे महापद्म राजा के महर्द्धिक यावत् महासौख्यशाली दो देव सेनाकर्म करते हैं । इसलिए देवानुप्रियो ! हमारे महापद्म राजा का दूसरा नाम देवसेन हो । तदनन्तर किसी दिन उस देवसेन राजा के शंखतल के समान निर्मल एवं श्वेत चार दांतों वाला हस्तिरत्न समुत्पन्न होगा । तब वह देवसेन राजा उस शंखतल के समान श्वेत एवं निर्मल चार दांत वाले हस्तिरत्न पर आरूढ हो कर शतद्वार नगर के मध्य में होकर बार-बार बाहर जाएगा और आएगा । यह देख कर बहुत-से राजेश्वर यावत् सार्थवाह प्रभृति परस्पर एक दूसरे को बुलाएँगे और फिर इस प्रकार कहेंगे-'देवानुप्रियो ! हमारे देवसेन राजा के यहाँ शंखतल के समान श्वेत, निर्मल एवं चार दांतों वाला हस्तिरत्न समुत्पन्न हआ है, अतः हे देवानुप्रियो ! हमारे देवसेन राजा का तीसरा नाम 'विमलवाहन' भी हो ।' किसी दिन विमलवाहन राजा श्रमण-निर्ग्रन्थों के प्रति
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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