SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद क्रियाओं । चतुर्थ में देव द्वारा विकुर्वित यान को साधु जानता है ? इत्यादि प्रश्नों । पाँचवें उद्देशक में साधु द्वारा स्त्री आदि के रूपों की विकुर्वणा-सम्बन्धी प्रश्नोत्तर । छठे में नगरसम्बन्धी वर्णन । सातवें में लोकपाल-विषयक वर्णन । आठवें में अधिपति-सम्बन्धी वर्णन । नौवें में इन्द्रियों के सम्बन्ध में निरुपण और दसवें में चमरेन्द्र की परिषद् का वर्णन है । [१५२] उस काल उस समय में 'मोका' नगरी थी । उस मोका नगरी के बाहर ईशानकोण में नन्दन चैत्य था । उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे । परिषद् निकली । धर्मोपदेश सुनकर परिषद् वापस चली गई । __ उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर के द्वितीय अन्तेवासी अग्निभूति नामक अनगार जिनका गोत्र गौतम था, तथा जो सात हाथ ऊँचे थे, यावत् पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले (पूछने लगे)-"भगवन् ! असुरों का इन्द्र असुरराज चमरेन्द्र कितनी बड़ी कृद्धि वाला है ? कितनी बड़ी द्युति-कान्ति वाला है ? कितने महान् बल से सम्पन्न है ? कितना महान् यशस्वी है ? कितने महान् सुखों से सम्पन्न है ? कितने महान् प्रभाव वाला है ? और वह कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ?" __ गौतम ! असुरों का इन्द्र असुरराज चमर महान् ऋद्धि वाला है यावत् महाप्रभावशाली है । वह वहाँ चौंतीस लाख भवनावासों पर, चौंसठ हजार सामानिक देवों पर और तैतीस त्रायस्त्रिंशक देवों पर आधिपत्य करता हुआ यावत् विचरण करता है । इतनी बड़ी कृद्धि वाला है, यावत् ऐसे महाप्रभाव वाला है; तथा उसकी विक्रिया करने की शक्ति इस प्रकार है-हे गौतम ! जैसे कोई युवा पुरुष हाथ से युवती स्त्री के हाथ को पकड़ता है, अथवा जैसे-गाड़ी के पहिये की घुरी आरों से अच्छी तरह जुड़ी हुई एवं सुसम्बद्ध होती है, इसी प्रकार असुरेन्द्र असुरराज चमर, वैक्रिय-समुद्घात द्वारा समवहत होता है, समवहत होकर संख्यात योजन तक लम्बा दण्ड निकालता है । तथा उसके द्वारा रत्नों के, यावत् रिष्ट रत्नों के स्थूल पुद्गलों को झाड देता है और सक्ष्म पदगलों को ग्रहण करता है । फिर दूसरी बार वैक्रिय समुदघात द्वारा समवहत होता है । हे गौतम ! वह असुरेन्द्र असुरराज चमर, बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों द्वारा परिपूर्ण जम्बूद्वीप को आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट और गाढ़ावगाढ़ करने में समर्थ है । हे गौतम ! इसके उपरान्त वह असुरेन्द्र असुरराज चमर, अनेक असुरकुमारदेव-देवियों द्वारा इस तिर्यग्लोक में भी असंख्यात द्वीपों और समुद्रों तक के स्थल को आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट और गाढ़ावगाढ़ कर सकता है । हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की ऐसी शक्ति है, विषय है, विषयमात्र है, परन्तु चमरेन्द्र ने इस सम्प्राप्ति से कभी विकुर्वण किया नहीं, न ही करता है, और न ही करेगा । ___ भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर जब ऐसी बड़ी ऋद्धि वाला है, यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है, तब, हे भगवन् ! उस असुरराज असुरेन्द्र चमर के सामानिक देवों की कितनी बड़ी ऋद्धि है, यावत् वे कितना विकुर्वण करने में समर्थ हैं ? हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के सामानिक देव, महती ऋद्धि वाले हैं, यावत् महाप्रभावशाली हैं । वे वहाँ अपने-अपने भवनों पर, अपने-अपने सामानिक देवों पर तथा अपनी-अपनी अग्रमहिषियों पर आधिपत्य करते हुए, यावत् दिव्य भोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं । ये इस प्रकार की बड़ी कृद्धि वाले हैं, यावत् इतना विकुर्वण करने में समर्थ हैं
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy