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________________ ५६ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद समय साम्परायिकी क्रिया करता है, उस समय ऐर्यापथिकी क्रिया करता है । ऐर्यापथिकी क्रिया करने से साम्परायिकी क्रिया करता है और साम्परायिकी क्रिया करने से ऐर्यापथिकी क्रिया करता है; हे भगवन् ! क्या यह इसी प्रकार है ? गौतम ! जो अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं, यावत्उन्होंने ऐसा जो कहा है, सो मिथ्या कहा है । हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ कि एक जीव एक समय में एक क्रिया करता है । यहाँ परतीर्थिकों का तथा स्वसिद्धान्त का वक्तव्य कहना चाहिए । यावत् ऐर्यापथिकी अथवा साम्परायिकी क्रिया करता है । [१०४] भगवन् ! नरकगति, कितने समय तक उपपात से विरहित रहती है ? गौतम ! जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त्त तक नरकगति उपपात से रहित रहती । इसी प्रकार यहाँ 'व्युत्क्रान्तिपद' कहना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह ऐसा ही है | शतक - १ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण शतक - २ उद्देशक - १ [१०५] द्वितीय शतक में दस उद्देशक हैं । उनमें क्रमशः इस प्रकार विषय हैंश्वासोच्छ्वास, समुद्घात, पृथ्वी, इन्द्रियाँ, निर्ग्रन्थ, भाषा, देव, (चमरेन्द्र) सभा, द्वीप ( समयक्षेत्र का स्वरूप) और अस्तिकाय ( का विवेचन ) । [१०६] उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था । भगवान् महावीर स्वामी ( वहाँ) पधारे । उनका धर्मोपदेश सुनने के लिए परिषद् निकली । भगवान् ने धर्मोपदेश दिया । धर्मोपदेश सुनकर परिषद् वापिस लौट गई । उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी (शिष्य) श्री इन्द्रभूति गौतम अनगार यावत्-भगवान् की पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले भगवन् ! ये जो द्वीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव हैं, उनके आभ्यन्तर और बाह्य उच्छ्वास को और आभ्यन्तर एवं बाह्य निःश्वास को हम जानते और देखते हैं, किन्तु जो ये पृथ्वीकाय से यावत् वनस्पतिकाय तक एकेन्द्रिय जीव हैं, उनके आभ्यन्तर एवं बाह्य उच्छ्वास को तथा आभ्यन्तर एवं बाह्य निःश्वास को हम न जानते हैं, और न देखते हैं । तो हे भगवन् ! क्या ये पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव आभ्यन्तर और बाह्य उच्छ्वास लेते हैं तथा "गभ्यन्तर और बाह्य निःश्वास छोड़ते हैं ? हाँ, गौतम ! ये पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव भी आभ्यन्तर और बाह्य उच्छ्वास लेते हैं और आभ्यन्तर एवं बाह्य निःश्वास छोड़ते हैं । [ १०७ ] भगवन् ! ये पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव, किस प्रकार के द्रव्यों को बाह्य और आभ्यन्तर उच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते हैं, तथा निःश्वास के रूप में छोड़ते हैं ? गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा अनन्तप्रदेश वाले द्रव्यों को, क्षेत्र की अपेक्षा असंख्यप्रदेशों में रहे हुए द्रव्यों को, काल की अपेक्षा किसी भी प्रकार की स्थितिवाले द्रव्यों को, तथा भाव की अपेक्षा वर्णवाले, गन्धवाले, रसवाले और स्पर्शवाले द्रव्यों को बाह्य और आभ्यन्तर उच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते हैं, तथा निःश्वास के रूप में छोड़ते हैं । भगवन् ! वे पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव भाव की अपेक्षा वर्णवाले जिन द्रव्यों को बाह्य और आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हैं, क्या वे द्रव्य एक
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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