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________________ ४६ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद द्वारा, वैक्रियलब्धि द्वारा शत्रुसेना का आगमन सुनकर, अवधारण ( विचार) करके अपने आत्मप्रदेशों को गर्भ से बाहर निकालता है, बाहर निकाल कर वैक्रियसमुद्घात से समवहत होकर चतुरंगिणी सेना की विक्रिया करता है । चतुरंगिणी सेना की विक्रया करके उस सेना से शत्रुसेना के साथ युद्ध करता है । वह अर्थ का कामी, राज्य का कामी, भोग का कामी, काम का कामी, अर्थाकांक्षी, राज्याकांक्षी, भोगाकांक्षी, कामाकांक्षी, तथा अर्थ का प्यासा, राज्य का प्यासा, भोग-पिपासु एवं कामपिपासु, उन्हीं चित्त वाला, उन्हीं में मन वाला, उन्हीं में आत्मपरिणाम वाला, उन्हीं में अध्यवसित, उन्हीं में प्रयत्नशील, उन्हीं में सावधानता - युक्त, उन्हीं के लिए क्रिया करने वाला, और उन्हीं भावनाओं से भावित, यदि उसी (समय के) अन्तर में मृत्यु को प्राप्त हो तो वह नरक में उत्पन्न होता है । इसलिए है गौतम ! यावत्कोई जीव नरक में उत्पन्न होता है और कोई नहीं उत्पन्न होता । भगवन् ! गर्भस्थ जीव क्या देवलोक में जाता है ? हे गौतम ! कोई जीव जाता है, और कोई नहीं जाता । भगवन् ! इसका क्या कारण है ? गौतम ! गर्भ में रहा हुआ संज्ञी पंचेन्द्रिय और सब पर्याप्तियों से पर्याप्त जीव, तथारूप श्रमण या माहन के पास एक भी आर्य और धार्मिक सुवचन सुन कर, अवधारण करके शीघ्र ही संवेग से धर्मश्रद्धालु बनकर, धर्म में तीव्र अनुराग से रक्त होकर, वह धर्म का कामी, पुण्य का कामी, स्वर्ग का कामी, मोक्ष का कामी, धर्माकांक्षी, पुण्याकांक्षी, स्वर्ग का आकांक्षी, मोक्षाकांक्षी तथा धर्मपिपासु, पुण्यपिपासु, स्वर्गपिपासु एवं मोक्षपिपासु, उसी में चित्त वाला, उसी में मन वाला, उसी में आत्मपरिणाम वाला, उसी में अध्यवसित, उसी में तीव्र प्रयत्नशील, उसी में सावधानतायुक्त, उसी के लिए अर्पित होकर क्रिया करने वाला, उसी की भावनाओं से भावित जीव ऐसे ही अन्तर में मृत्यु को प्राप्त हो तो देवलोक में उत्पन्न होता है । इसलिए हे गौतम! कोई जीव देवलोक में उत्पन्न होता है और कोई नहीं उत्पन्न होता । भगवन् ! गर्भ में रहा हुआ जीव क्या चित - लेटा हुआ होता है, या करवट वाला होता है, अथवा आम के समान कुबड़ा होता है, या खड़ा होता है, बैठा होता है या पड़ा हुआ होता है; तथा माता जब सो रही हो तो सोया होता है, माता जब जागती हो तो जागता है, माता सुखी होने पर सुखी होता है, एवं माता के दुःखी होने पर दुःखी होता है ? हाँ, गौतम ! गर्भ में रहा हुआ जीव... यावत् - जब माता दुःखित हो तो दुःखी होता है । इसके पश्चात् प्रसवकाल में अगर वह गर्भगत जीव मस्तक द्वारा या पैरों द्वारा (गर्भ से) बाहर आए तब तो ठीक तरह आता है, यदि वह टेढ़ा हो कर आए तो मर जाता है । गर्भ से निकलने के पश्चात् उस जीव के कर्म यदि अशुभरूप में बंधे हों, स्पृष्ट हों, निधत्त हों, कृत हों, प्रस्थापित हों, अभिनिविष्ट हों अभिसमन्वागत हों, उदीर्ण हों, और उपशान्त न हों, तो वह जीव कुरूप, कुवर्ण दुर्गन्ध वाला, कुरस वाला, कुस्पर्श वाला, अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ, अमनाम, हीन स्वर वाला, दीन स्वर वाला, अनिष्ट अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ एवं अमनाम स्वर वाला; तथा अनादेय वचन वाला होता है, और यदि उस जीव के कर्म अशुभरूप में न बँधे हुए हों तो, उसके उपर्युक्त सब बातें प्रशस्त होती हैं,... यावत्-वह आदेयवचन वाला होता है ।' 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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