SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती - १/-/४/५१ ३५ कोई मनुष्य कर्मों का अन्त करने वाले, चरम शरीरी हुए हैं, अथवा समस्त दुःखों का जिन्होंने अन्त किया है, जो अन्त करते हैं या करेंगे, वे सब उत्पन्नज्ञानदर्शनधारी, अर्हन्त, जिन, और केवली होकर तत्पश्चात् सिद्ध हुए हैं, बुद्ध हुए हैं, मुक्त हुए हैं, परिनिर्वाण को प्राप्त हुए हैं, और उन्होंने समस्त दुःखों का अन्त किया है, करते हैं और करेंगे; इसी कारण से हे गौतम! ऐसा कहा है कि यावत् समस्त दुःखों का अन्त किया । वर्तमान काल में भी इसी प्रकार जानना । विशेष यह है कि 'सिद्ध होते हैं', ऐसा कहना चाहिए । तथा भविष्यकाल में भी इसी प्रकार जानना । विशेष यह है कि 'सिद्ध होंगे', ऐसा कहना चाहिए । जैसा छद्मस्थ के विषय में कहा है, वैसा ही आधोवधिक और परमाधोवधिक के विषय में जानना और उसके तीन-तीन आलापक कहने चाहिए । भगवन् ! बीते हुए अनन्त शाश्वतकाल में केवली मनुष्य ने यावत् सर्व दुःखों का अन्त किया है ? हाँ गौतम ! वह सिद्ध हुआ, यावत् उसने समस्त दुःखों का अन्त किया । यहाँ भी छद्मस्थ के समान ये तीन आलापक कहने चाहिए । विशेष यह है कि सिद्ध हुआ, सिद्ध होता है और सिद्ध होगा, इस प्रकार तीन आलापक कहने चाहिए । भगवन् ! बीते हुए अनन्त शाश्वतकाल में, वर्तमान शाश्वतकाल में और अनन्त शाश्वत भविष्यकाल में जिन अन्तकरों ने अथवा चरमशरीरी पुरुषों ने समस्त दुःखों का अन्त किया है, करते हैं या करेंगे; क्या वे सब उत्पन्नज्ञान- दर्शनधारी, अर्हन्त, जिन और केवली होकर तत्पश्चात् सिद्ध, बुद्ध आदि होते हैं, यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे ? हाँ, गौतम ! बीते हुए अनन्त शाश्वतकाल में यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे । भगवन् ! वह उत्पन्न ज्ञान - दर्शनधारी, अर्हन्त, जिन और केवली 'अलमस्तु' अर्थात्-पूर्ण है, ऐसा कहा जा सकता है ? हाँ, गौतम ! वह उत्पन्न ज्ञानदर्शनधारी, अर्हन्त, जिन और केवली पूर्ण है, ऐसा कहा जा सकता है । 'हे भगवन् ! यह ऐसा ही है, भगवन् ! भगवन् ! ऐसा ही है ।' शतक - १ उद्देशक - ५ [५२] भगवन् ! (अधोलोक में ) कितनी पृथ्वीयाँ (नरकभूमियाँ) कही गई हैं ? गौतम ! सात पृथ्वीयाँ हैं । रत्नप्रभा से लेकर यावत् तमस्तमः प्रभा तक । भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितने लाख नारकावास कहे गए हैं ? गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस लाख नारकावास हैं । नारकावासों की संख्या बतानेवाली गाथा - [ ५३ ] प्रथम पृथ्वी (नरकभूमि) में तीस लाख, दूसरी में पच्चीस लाख, तीसरी में पन्द्रह लाख, चौथी में दस लाख, पांचवीं में तीन लाख, छठी में पांच कम एक लाख और सातवीं में केवल पांच नारकावास हैं । [५४] भगवन् ! असुरकुमारों के कितने लाख आवास हैं ? गौतम ! इस प्रकार हैं । [ ५५ ] असुकुमारों के चौंसठ लाख आवास कहे हैं । नागकुमारों के चौरासी लाख, सुपर्णकुमारों के ७२ लाख, वायुकमारों के ९६ लाख, तथा [ ५६ ] द्वीपकुमार, दिक्कुमार, उदधिकुमार, विद्युत्कुमार, स्तनितकुमार और अग्निकुमार, इन छह युगलकों (दक्षिणवर्ती और उत्तरवर्त्ती दोनों के ७६-७६ लाख आवास कहे गये हैं । [५७] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के कितने लाख आवास कहे गए हैं ? गौतम !
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy