SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद भवनवासियों में और उत्कृष्टतः ऊपर के ग्रैवेयकों में है । अखण्डित संयमवालों का जघन्य सौधर्मकल्प में और उत्कृष्ट सर्वार्थसिद्धमें, खण्डित संयमवालों का जघन्य भवनवासियों में और उत्कृष्ट सौधर्मकल्प में, अखण्डित संयमासंयम का जघन्य सौधर्मकल्प में और उत्कृष्ट अच्युतकल्प में, खण्डित संयमासंयमवालों का जघन्य भवनवासियों में और उत्कृष्ट ज्योतिष्कदेवों में, असंज्ञी जीवों का जघन्य भवनवासियों में और उत्कृष्ट वाण-व्यन्तरदेवों में और शेष सबका उत्पाद जघन्य भवनवासियों में होता है; उत्कृष्ट उत्पाद तापसों ज्योतिष्कों में, कान्दर्पिकों सौधर्मकल्प में, चरस्कपख्रिाजकों ब्रह्मलोककल्प में, किल्विषिकों लान्तककल्प में, तिर्यञ्चों सहस्त्रारकल्प में, आजीविकों तथा आभियोगिकों अच्युतकल्प में, और श्रद्धाभ्रष्टवेषधारियों ग्रैवेयकों तक उत्पाद होता है । [३३] भगवन् ! असंज्ञी का आयुष्य कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! असंज्ञी का आयुष्य चार प्रकार का कहा गया है । वह इस प्रकार है-नैरयिक-असंज्ञी आयुष्य तिर्यञ्च-असंज्ञी आयुष्य, मनुष्य-असंज्ञी आयुष्य और देव-असंज्ञी आयुष्य । भगवन् ! असंज्ञी जीव क्या नरक का आयुष्य उपार्जन करता है, तिर्यश्चयोनिक का आयुष्य उपार्जन करता है, मनुष्य का आयुष्य भी उपार्जन करता है या देव का आयुष्य उपार्जन करता है ? हाँ गौतम ! वह नरक का आयुष्य भी उपार्जन करता है, तिर्यञ्च का आयुष्य भी उपार्जन करता है, मनुष्य का आयुष्य भी उपार्जन करता है और देव का आयुष्य भी उपार्जन करता है । नारक का आयुष्य उपार्जन करता हुआ असंज्ञीजीव जघन्य दस हजार वर्ष का और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग का उपार्जन करता है । तिर्यञ्चयोनि का आयुष्य उपार्जन करता हुआ असंज्ञी जीव जघन्य अन्तमुहूर्त का और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग का उपार्जन करता है । मनुष्य का आयुष्य भी इतना ही उपार्जन करता है और देव आयुष्य का उपार्जन भी नरक के आयुष्य के समान करता है । __ हे भगवन् ! नारक-असंज्ञी-आयुष्य, तिर्यञ्च-असंज्ञी-आयुष्य, मनुष्य-असंज्ञी-आयुष्य और देव-असंज्ञी-आयुष्य; इनमें कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! देव-असंज्ञी-आयुष्य सबसे कम है, उसकी अपेक्षा मनुष्य-असंज्ञी-आयुष्य असंख्यातगुणा है, उससे तिर्यञ्च असंज्ञी-आयुष्य असंख्यात-गुणा है और उससे भी नारक-असंज्ञी-आयुष्य असंख्यातगुणा है । 'हे भगवन् ! वह इसी प्रकार है ।' ऐसा कहकर गौतम स्वामी संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे । शतक-१ उद्देशक-३ | [३४] भगवन् ! क्या जीवों का कांक्षामोहनीय कर्म कृतक्रियानिष्पादित (किया हुआ) है ? हाँ गौतम ! वह कृत है । भगवन् ! क्या वह देश से देशकृत है, देश से सर्वकृत है, सर्व से देशकृत है अथवा सर्व से सर्वकृत है ? गौतम ! वह देश से देशकृत नहीं है, देश से सर्वकृत नहीं है, सर्व से देशकृत नहीं है, सर्व से सर्वकृत है । । भगवन् ! क्या नैरयिकों का कांक्षामोहनीय कर्म कृत है ? हाँ, गौतम कृत, यावत् ‘सर्व से सर्वकृत है' इस प्रकार से यावत् चौबीस ही दण्डकों में वैमानिकपर्यन्त कहना । [३५] भगवन् ! क्या जीवों ने कांक्षामोहनीय कर्म का उपार्जन किया है ? हाँ गौतम !
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy