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________________ भगवती-९/-/३२/४५३ २५१ प्रकार शर्कराप्रभा का उससे आगे की पृथ्वीयों के साथ योग करना चाहिए यावत् अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है । अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है अथवा एक पंकप्रभा में एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । भगवन् ! पांच नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि पृच्छा । गांगेय ! रत्नप्रभा में होते हैं, यावत् अधःसप्तम-पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं । (द्विकसंयोगी ८४ भंग-) अथवा एक रत्नप्रभा में और चार शर्कराप्रभा में होते हैं; यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में और चार अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं । अथवा दो रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा में, इसी प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में और तीन अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा तीन रत्नप्रभा में और दो शर्कराप्रभा में । २-६ इसी प्रकार यावत् अथवा तीन रत्नप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं । अथवा चार रत्नप्रभा में और शर्कराप्रभा में, यावत् अथवा चार रत्नप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक शर्कराप्रभा में और चार बालुकाप्रभा में होते हैं । जिस प्रकार रत्नप्रभा के साथ आगे की पृथ्वीयों का संयोग किया, उसी प्रकार शर्कराप्रभा के साथ संयोग करने पर बीस भंग होते हैं । यावत् अथवा चार शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । इसी प्रकार बालुकाप्रभा आदि एक-एक पृथ्वी के साथ आगे की पृथ्वीयों का योग करना; यावत् चार तमःप्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है । (त्रिकसंयोगी २१० भंग-) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और तीन बालुकाप्रभा में होते हैं । इसी प्रकार यावत्- अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और तीन अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं । अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और दो बालुकाप्रभा में होते हैं; इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं । अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो बालुकाप्रभा में होते हैं । इस प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं । अथवा एक रत्नप्रभा में, तीन शर्कराप्रभा में, और एक बालुकाप्रभा में होता है । इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, तीन शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा दो रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और एक बालुकाप्रभा में होता है । इसी प्रकार यावत् दो रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा तीन रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में होता है । इस प्रकार यावत् तीन रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमापृथ्वी में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और दो पंकप्रभा में होते हैं, इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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