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________________ भगवती-८/-/९/४२४ २२९ भगवन् ! औदारिकशरीर-प्रयोगबंध काल की अपेक्षा, कितने काल तक रहता है ? गौतम ! सर्वबंध एक समय तक रहता है और देशबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः एक समय कम तीन पल्योपम तक रहता है । भगवन् ! एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबंध कालतः कितने काल तक रहता है ? गौतम ! सर्वबंध एक समय तक रहता है और देशबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः एक समय कम २२ हजार वर्ष तक रहता है । भगवन् ! पृथ्वीकायिक कितने काल तक रहता है ? गौतम ! सर्वबंध एक समय तक रहता है और देशबंध जघन्यतः तीन समय कम क्षुल्लक भवग्रहण तथा उत्कृष्टतः एक समय कम २२ हजार वर्ष तक रहता है । इस प्रकार सभी जीवों का सर्वबंध एक समय तक रहता है । जिनके वैक्रियशरीर नहीं है, उनका देशबंध जघन्यतः तीन समय कम क्षुल्लकभवग्रहण पर्यन्त और उत्कृष्टतः जिस जीव की जितनी उत्कृष्टतः आयुष्य-स्थिति है, उससे एक समय कम तक रहता है । जिनके वैक्रियशरीर है, उनके देशबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः जिसकी जितनी (आयुष्य) स्थिति है, उसमें से एक समय कम तक रहता है । इस प्रकार यावत् मनुष्यों का देशबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः एक समय कम तीन पल्योपम तक जानना चाहिए । भगवन् ! औदारिकशरीर के बंध का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! इसके सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः तीन समय कम क्षुल्लकभव-ग्रहण पर्यन्त और उत्कृष्टतः समयाधिक पूर्वकोटि तथा तेतीस सागरोपम है । देशबंध का अन्तर जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः तीन समय अधिक तेतीस सागरोपम है । भगवन् ! एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-बंध का अन्तर काल कितने का है ? गौतम ! इसके सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः तीन समय काम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कृष्टतः एक समय अधिक बाईस हजार वर्ष है । देशबंध का अन्तर जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त का है । भगवन् ! पृथ्वीकायिक कितने काल का है ? गौतम ! इसके सर्वबंध का अन्तर एकेन्द्रिय समान कहना चाहिए । देशबंध का अन्तर जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः तीन समय का है । जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों का शरीरबंधान्तर कहा गया है, उसी प्रकार वायुकायिक जीवों को छोड़ कर चतुरिन्द्रिय तक सभी जीवों का शरीरबंधान्तर कहना, किन्तु विशेषतः उत्कृष्ट सर्वबंधान्तर जिस जीव की जितनी स्थिति हो, उससे एक समय अधिक कहना । वायुकायिक जीवों के सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः तीन समय कम क्षुल्लकभव-ग्रहण और उत्कृष्टतः समयाधिक तीन हजार वर्ष का है । इनके देशबंध का अन्तर जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त का है । भगवन् ! पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक-औदारिकशरीरबंध का अन्तर कितने काल का है ? गौतम ! इसके सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः तीन समय कम क्षल्लकभव-ग्रहण है और उत्कृष्टतः समयाधिक पूर्वकोटि का है । देशबंध का अन्तर एकेन्द्रिय जीवों के समान सभी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों का कहना । इसी प्रकार मनुष्यों के शरीरबंधान्तर के विषय में भी पूर्ववत् 'उत्कृष्टतः अन्तमुहूर्त का है। यहां तक सारा कथन करना। भगवन् ! एकेन्द्रियावस्थागत जीव नोएकेन्द्रियावस्था में रह कर पुनः एकेन्द्रियरूप में आए तो एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबंध का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! (ऐसे जीव का) सर्वबंधान्तर जघन्यतः तीन समय कम दो क्षुल्लक भवग्रहण काल और उत्कृष्टतः संख्यातवर्ष-अधिक दो हजार सागरोपम का होता है । भगवन् ! पृथ्वीकायिक-अवस्थागत जीव
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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