SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद भगवन् ! सयोगी जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी ? गौतम ! सयोगी जीवों का कथन सकायिक जीवों के समान समझना । इसी प्रकार मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी जीवों का कथन भी समझना । अयोगी जीवों का कथन सिद्धों के समान समझना । भगवन् ! सलेश्य जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी ? गौतम ! सलेश्य जीवों का कथन सकायिक जीवों के समान जानना । भगवन् ! कृष्णलेश्यावान् जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! कृष्णलेश्यावाले जीवों का कथन सेन्द्रिय जीवों के समान जानना । इसी प्रकार यावत्, पद्मलेश्या वाले जीवों का कथन करना । शुक्ललेश्यावाले जीवों का कथन सलेश्य जीवों के समान समझना । अलेश्य जीवों का कथन सिद्धों के समान जानना । भगवन् ! सकषायी जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! सकषायी जीवों का कथन सेन्द्रिय जीवों के समान जानना चाहिए । इसी प्रकार यावत्, लोभकषायी जीवों के विषय में भी समझ लेना चाहिए । भगवन् ! अकषायी जीव क्या ज्ञानी होते हैं, अथवा अज्ञानी ? गौतम ! (वे ज्ञानी होते हैं, अज्ञानी नहीं ।) उनमें पांच ज्ञान भजना से पाए जाते हैं । . भगवन् ! सवेदक जीव ज्ञानी होते हैं, अथवा अज्ञानी ? गौतम ! सवेदक जीवों को सेन्द्रियजीवों के समान जानना । इसी तरह स्त्रीवेदकों, पुरुषवेदकों और नपुंसकवेदक जीवों को भी कहना । अवेदक जीवों को अकषायी जीवों के समान जानना । भगवन् ! आहारक जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी ? गौतम ! आहारक जीवों का कथन सकषायी जीवों के समान जानना चाहिए, किन्तु इतना विशेष है कि उनमें केवलज्ञान भी पाया जाता है । भगवन् ! अनाहारक जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी ? गौतम ! वे ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी । जो ज्ञानी हैं, उनमें मनःपर्यवज्ञान को छोड़ कर शेष चार ज्ञान पाए जाते हैं और जो अज्ञानी हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं । [३९५] भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञान का विषय कितना व्यापक है ? गौतम ! संक्षेप में चार प्रकार का है । यथा-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से आभिनिबोधिकज्ञानी आदेश (सामान्य) से सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है, क्षेत्र से सामान्य से सभी क्षेत्र को जानता और देखता है, इसी प्रकार काल से भी और भाव से भी जानना । भगवन् ! श्रुतज्ञान का विषय कितना है ? गौतम ! वह संक्षेप में चार प्रकार का है । -द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से उपयोगयुक्त श्रुतज्ञानी सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है । क्षेत्र से सर्वक्षेत्र को जानता-देखता है । इसी प्रकार काल से भी जानना । भाव से उपयुक्त श्रुतज्ञानी सर्वभावों को जानता और देखता है । भगवन् ! अवधिज्ञान का विषय कितना है ? गौतम वह संक्षेप में चार प्रकार का है । -द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से अवधिज्ञानी रूपीद्रव्यों को जानता और देखता है । इत्यादि वर्णन नन्दीसूत्र के समान 'भाव' पर्यन्त जानना । भगवन् ! मनःपर्यवज्ञान का विषय कितना है ? गौतम ! वह संक्षेप में चार प्रकार का है, -द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से ऋजुमतिमनःपर्यवज्ञानी (मनरूप में परिणत) अनन्तप्रादेशिक अनन्त (स्कन्धों) को जानता-देखता है, इत्यादि नन्दीसूत्र अनुसार 'भावत' तक कहना । भगवन् ! केवलज्ञान का विषय कितना है ? गौतम ! वह संक्षेप में चार प्रकार का है । -द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से केवलज्ञानी सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है । इसी प्रकार यावत् भाव से केवलज्ञानी
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy