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________________ १७४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद भगवन् ! क्या नीललेश्यावाला नैरयिक कदाचित् अल्पकर्मवाला होता है और कापोतलेश्यावाला नैरयिक कदाचित् महाकर्मवाला होता है ? हाँ, गौतम ! कदाचित् ऐसा होता है । भगवन् ! आप किस कारण से ऐसा कहते हैं कि नीललेश्या वाला नैरयिक कदाचित् अल्पकर्मवाला होता है और कापोतलेश्या वाला नैरयिक कदाचित् महाकर्मवाला होता है ? गौतम ! स्थिति की अपेक्षा ऐसा कहता हूँ । इसी प्रकार असुरकुमारों के विषय में भी कहना चाहिए, परन्तु उनमें एक तेजोलेश्या अधिक होती है । इसी तरह यावत् वैमानिक देवों तक कहना चाहिए । जिसमें जितनी लेश्याएँ हों, उतनी कहनी चाहिए, किन्तु ज्योतिष्क देवों के दण्डक का कथन नहीं करना चाहिए । भगवन् ! क्या पद्मलेश्यावाला वैमानिक कदाचित् अल्पकर्मवाला और शुक्ललेश्यावाला वैमानिक कदाचित् महाकर्मवाला होता है ? हाँ, गौतम ! कदाचित् होता है । भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ? (इसके उत्तर में) शेष सारा कथन नैरयिक की तरह यावत् ‘महाकर्मवाला होता है'; यहाँ तक करना चाहिए। [३४९] भगवन् ! क्या वास्तव में जो वेदना है, वह निर्जरा कही जा सकती है ? और जो निर्जरा है, वह वेदना कही जा सकती है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि जो वेदना है, वह निर्जरा नहीं कही जा सकती और जो निर्जरा है, वह वेदना नहीं कही जा सकती ? गौतम ! वेदना कर्म है और निर्जरा नोकर्म है । इस कारण से ऐसा कहा जाता है । भगवन् ! क्या नैरयिकों की जो वेदना है, उसे निर्जरा कहा जा सकता है, और जो निर्जरा है, उसे वेदन कहा जा सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि नैरयिकों की जो वेदना है, उसे निर्जरा नहीं कहा जा सकता और जो निर्जरा है, उसे वेदना नहीं कहा जा सकता ? गौतम ! नैरयिकों की जो वेदना है, वह कर्म है और जो निर्जरा है, वह नोकर्म है । इस कारण से हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ। इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए । भगवन् ! जिन कर्मों का वेदन कर (भोग) लिया, क्या उनको निर्जीर्ण कर लिया और जिन कर्मों को निर्जीर्ण कर लिया, क्या उनका वेदन कर लिया ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते है कि जिन कर्मों का वेदन कर लिया, उनको निर्जीर्ण नहीं किया और जिन कर्मों को निर्जीर्ण कर लिया, उनका वेदन नहीं किया ? गौतम ! वेदन किया गया कर्मों का, किन्तु निर्जीर्ण किया गया है-नोकर्मों को इस कारण से हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा । भगवन् ! नैरयिक जीवों ने जिस कर्म का वेदन कर लिया, क्या उसे निर्जीर्ण कर लिया ? पहले कहे अनुसार नैरयिकों के विषय में भी जान लेना । इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त चौवीस ही दण्डक में कथन करना । ___ भगवन् ! क्या वास्तव में जिस कर्म को वेदते हैं, उसकी निर्जरा करते हैं और जिसकी निर्जरा करते हैं, उसको वेदते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! यह आप किस कारण से कहते हैं कि जिसको वेदते हैं, उसकी निर्जरा नहीं करते और जिसकी निर्जरा करते हैं, उसको वेदते नहीं हैं ? गौतम ! कर्म को वेदते हैं और नोकर्म को निर्जीर्ण करते हैं। इस कारण से हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ । इसी तरह नैरयिकों के विषय में जानना ।
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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