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________________ भगवती-७/-/१/३३५ १६९ प्रवृत्ति करता है । हे गौतम ! इस कारण से उसे साम्परायिकी क्रिया लगती है । [३३६] भगवन् ! अंगारदोष धूमदोष और संयोजनादोष से दूषित पान भोजन का क्या अर्थ कहा गया है ? गौतम ! जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी प्रासुक और एषणीय अशनपान-खादिम-स्वादिमरूप आहार ग्रहण करके उसमें मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और आसक्त होकर आहार करते हैं, हे गौतम ! यह अंगारदोष से दूषित आहार-पानी है । जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी प्रासुक और एषणीय अशन-पान-खादिम-स्वादिस रूप आहार ग्रहण करके, उसके प्रति अत्यन्त अप्रीतिपूर्वक, क्रोध से खिन्नता करते हुए आहार करते हैं, तो हे गौतम ! यह धूमदोष में दूषित आहार-पानी है । जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी प्रासुक यावत् आहार ग्रहण करके गुण उत्पन्न करने हेतु दूसरे पदार्थों के साथ संयोग करके आहार-पानी करते हैं, हे गौतम ! वह आहार-पानी संयोजना दोष से दूषित है । हे गौतम ! यह अंगार दोष धूमदोष और संयोजना दोष से दूषित पान-भोजन का अर्थ है । भगवन् अंगार, धूम और संयोजना, इन तीन दोषों से मुक्त पानी-भोजन का क्या अर्थ कहा गया है ? गौतम ! जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी यावत् अत्यन्त आसक्ति एवं मूर्छा रहित आहार करते है तो यह अंगारदोष रहित पान भोजन है, अशनादि को ग्रहण करके अत्यन्त अप्रीतिपूर्वक यावत् आहार नहीं करता है, हे गौतम ! यह धूमदोषरहित पान-भोजन है । जैसा मिला है, वैसा ही आहार कर लेते हैं, तो हे गौतम ! यह संयोजनादोषरहित पान-भोजन कहलाता है । हे गौतम ! यह अंगारदोषरहित, धूमदोषरहित एवं संयोजनादोषविमुक्त पानभोजन का अर्थ कहा गया है । [३३७] भगवन् ! क्षेत्रातिक्रान्त, कालातिक्रान्त, मार्गातिक्रान्त और प्रमाणातिक्रान्त पान-भोजन का क्या अर्थ है ? गौतम ! जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी, प्रासुक और एषणीय अशनपान-खादिम-स्वादिमरूप चतुर्विध आहार को सूर्योदय से पूर्व ग्रहण करके सूर्योदय के पश्चात् उस आहार को करते हैं, तो हे गौतम ! यह क्षेत्रातिक्रान्त पान-भोजन है । जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी यावत् चतुर्विध आहार को प्रथम प्रहर में ग्रहण करके अन्तिम प्रहर तक रख कर सेवन करते हैं, तो हे गौतम ! यह कालातिक्रान्त पान-भोजन है । जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी यावत् चतुर्विध आहार को ग्रहण करके आधे योजन की मर्यादा का उल्लंघन करके खाते हैं, तो हे गौतम ! यह मागातिक्रान्त पान-भोजन है । जो निग्रन्थ या निर्ग्रन्थी प्रासुक एवं एषणीय यावत् आहार को ग्रहण करके कुक्कुटीअण्डक प्रमाण बत्तीस कवल की मात्रा से अधिक आहार करता है, तो हे गौतम ! यह प्रमाणातिक्रान्त पान-भोजन है । कुक्कुटी-अण्डकप्रमाण आठ कवल की मात्र में आहार करने वाला साधु ‘अल्पाहारी' है । कुक्कुटी-अण्डकप्रमाण बारह कवल की मात्रा में आहार करने वाला साधु अपार्द्ध अवमोदरिकावाला है । कुक्कुटी-अण्डकप्रमाण सोलह कवल की मात्रा में आहार करने वाला साधु द्विभागप्राप्त आहारवाला है । कुक्कुटी-अण्डकप्रमाण चौबीस कवल की मात्रा में आहार करने वाला साधु ऊनोदरिकावाला है । कुक्कुटी-अण्डकप्रमाण बत्तीस कवल की मात्रा में आहार करनेवाला साधु प्रमाणप्राप्त आहारी है । इस से एक भी ग्रास कम आहार करने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ 'प्रकामरसभोजी' नहीं है, यह कहा जा सकता है । हे गौतम ! यह क्षेत्रातिक्रान्त, कालातिक्रान्त, माईतिक्रान्त और प्रमाणातिक्रान्त पान-भोजन का अर्थ है ।
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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