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________________ भगवती - ६/-/६/३०१ १५९ सब जीवों के लिए कथन करना । हे भगवन् ! जो जीव मारणान्तिक-समुद्घात से समवहत हो कर महान् से महान् महाविमानरूप पंच अनुत्तरविमानों में से किसी एक अनुत्तरविमान में अनुत्तरौपपातिक - देव रूप में उत्पन्न होने वाला है, क्या वह जीव वहाँ जा कर ही आहार करता है, आहार को परिणमाता है और शरीर बांधता है ? गौतम ! पहले कहा गया है, उसी प्रकार कहना चाहिए,... हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - ६ उद्देशक - ७ [३०२] भगवन् ! शालि, व्रीहि, गेहूँ, जौ तथा यवयव इत्यादि धान्य कोठे में सुरक्षित रखे हो, बांस के पल्ले से रखे हों, मंच पर रखे हों, माल में डालकर रखे हों, गोबर से उनके मुख उल्लिप्त हों, लिप्त हों, ढँके हुए हों, मुद्रित हों, लांछित किये हुए हों; तो उन (धान्यों ) की योनि कितने काल तक रहती है ? हे गौतम ! उनकी योनि कम से कम अन्तमुहूर्त तक और अधिक से अधिक तीन वर्ष तक कायम रहती है । उसके पश्चात् उन (धांन्यों) की योनि लान हो जाती है, प्रविध्वंस को प्राप्त हो जाती है, फिर वह बीज अबीज हो जाता है । इसके पश्चात् उस योनि का विच्छेद हुआ कहा जाता है । भगवन् ! कलाय, मसूर, तिल, मूंग, उड़द, बाल, कुलथ, आलिसन्दक, तुअर, पलिमंथक इत्यादि (धान्य पूर्वोक्त रूप से कोठे आदि में रखे हुए हों तो इन ) धान्यों की (योनि कितने काल तक रहती है ?) गौतम ! शाली धान्य के समान इन धान्यों के लिए भी कहना । विशेषता यह कि यहाँ उत्कृष्ट पांच वर्ष कहना । शेष पूर्ववत् । हे भगवन् ! अलसी, कुसुम्भ, कोद्रव, कांगणी, बरट, राल, सण, सरसों, मूलकबीज आदि धान्यों की योनि कितने काल तक कायम रहती है ? हे गौतम! शाली धान्य के समान इन धान्यों के लिए भी कहना । विशेषता इतनी है कि इनकी योनि उत्कृष्ट सात वर्ष तक कायम रहती है । शेष वर्णन पूर्ववत् समझ लेना । I [३०३] भगवन् ! एक-एक मुहूर्त के कितने उच्छ्वास कहे गये हैं ? गौतम ! असंख्येय समयों के समुदाय की समिति के समागम से अर्थात् असंख्यात समय मिलकर जितना काल होता है, उसे एक 'आवलिका' कहते हैं । संख्येय आवलिका का एक 'उच्छ्वास' होता है और संख्येय आवलिका का एक निःश्वास' होता है । [३०४] हृष्टपुष्ट, वृद्धावस्था और व्याधि से रहित प्राणी का एक उच्छ्वास और एक निःश्वास- ( ये दोनों मिल कर ) एक 'प्राण' कहलाते हैं । [ ३०५] सात प्राणों का एक 'स्तोक' होता है । सात स्तोकों का एक 'लव' होता है । ७७ लवों का एक मुहूर्त कहा गया है । [३०६] अथवा ३७७३ उच्छ्वासों का एक मुहूर्त्त होता है, ऐसा समस्त अनन्तज्ञानियों ने देखा है । [३०७] इस मुहूर्त के अनुसार तीस मुहूर्त्त का एक 'अहोरात्र' होता है । पन्द्रह 'अहोरात्र' का एक 'पक्ष' होता है । दो पक्षों का एक 'मास' होता है । दो 'मासों' की एक 'ऋतु' होती है । तीन ऋतुओं का एक 'अयन' होता है । दो अयन का एक 'संवत्सर' (वर्ष) होता है । पांच संवत्सर का एक 'युग' होता है । बीस युग का एक सौ वर्ष होता है । दस
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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