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________________ १५२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद नैरयिक जीवों के समान सिद्धपर्यन्त शेष सभी जीवों के लिए कहना चाहिए । जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर शेष सभी आहारक जीवों के लिए तीन भंग कहने चाहिए, यथा-(१) सभी सप्रदेश, (२) बहुत सप्रदेश और एक अप्रदेश, और (३) बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश । अनाहारक जीवों के लिए एकेन्द्रिय को छोड़कर छह भंग इस प्रकार कहने चाहिए, यथा-(१) सभी सप्रदेश, (२) सभी अप्रदेश, (३) एक सप्रदेश और एक अप्रदेश, (४) एक सप्रदेश और बहुत अप्रदेश, (५) बहुत सप्रदेश और एक अप्रदेश और (६) बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश । सिद्धों के लिए तीन भंग कहने चाहिए । भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक जीवों के लिए औधिक जीवों की तरह कहना चाहिए । नौभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक जीव और सिद्धों में (पूर्ववत्) तीन भंग कहने चाहिए । संज्ञी जीवों में जीव आदि तीन भंग कहने चाहिए । असंज्ञी जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए । नैरयिक, देव और मनुष्यों में छह भंग कहने चाहिए । नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव, मनुष्य और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए । सलेश्य जीवों का कथन, औधिक जीवों की तरह करना चाहिए । कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या वाले जीवों का कथन आहारक जीव की तरह करना चाहिए । किन्तु इतना विशेष है कि जिसके जो लेश्या हो, उसके वह लेश्या कहनी चाहिए । तेजोलेश्या में जीव आदि तीन भंग कहने चाहिए; किन्तु इतनी विशेषता है कि पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों में छह भंग कहने चाहिए । पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या में जीवादिक तीन भंग कहने चाहिए । अलेश्य जीव और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए तथा अलेश्य मनुष्यों में छह भंग कहने चाहिए । सम्यग्दृष्टि जीवों में जीवादिक तीन भंग कहने चाहिए । विकलेन्द्रियों में छह भंग कहने चाहिए । मिथ्यादृष्टि जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहने चाहिए । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में छह भंग कहने चाहिए । संयतों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए । असंयतों में एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहने चाहिए । संयतासंयत जीवों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए । नोसंयतनोअसंयत-नोसंयतासंयत जीव और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए। सकषायी जीवों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए । एकेन्द्रिय (सकषायी) में अभंगक कहना चाहिए । क्रोधकषायी जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहने चाहिए । मानकषायी और मायाकषायी जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहने चाहिए । नैरयिकों और देवों में छह भंग कहने चाहिए । लोभकषायी जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए । नैरयिक जीवों में छह भंग कहने चाहिए । अकषायी जीवों, जीव, मनुष्य और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए । औधिक ज्ञान, आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान में जीवादि तीन भंग कहना । विकलेन्द्रियो में छह भंग कहना । अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान में जीवादि तीन भंग कहना । औधिक अज्ञान, मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान में एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहना । विभंगज्ञान में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए ।। जिस प्रकार औधिक जीवों का कथन किया, उसी प्रकार सयोगी जीवों का कथन
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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