SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती-६/-/३/२८३ १४९ [ २८३] भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! कर्मप्रकृतियाँ आठ कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय यावत् अन्तराय । भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म की बन्धस्थिति कितने काल की कही गई है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है । उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है । अबाधाकाल जितनी स्थिति को कम करने से शेष कर्मस्थिति कर्मनिषेधकाल जानना । इसी प्रकार दर्शनावरणीय कर्म के विषय में भी जानना । वेदनीय कर्म की जघन्य (बन्ध ) स्थिति दो समय की है, उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की जाननी चाहिए। मोहनीय कर्म की बन्धस्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट ७० कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है । सात हजार वर्ष का अबाधाकाल है । अबाधाकाल की स्थिति को कम करने से शेष कर्मस्थिति कर्मनिषेककाल जानना चाहिए । आयुष्यकर्म की बन्धस्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि के त्रिभाग से अधिक तेतीस सागरोपम की है । इसका कर्मनिषेक काल (तेतीस सागरोपम का तथा शेष ) अबाधाकाल जानना चाहिए । नामकर्म और गोत्र कर्म की बन्धस्थिति जघन्य आठ मुहूर्त की और उत्कृष्ट २० कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है । इसका दो हजार वर्ष का अबाधाकाल है । उस अबाधाकाल की स्थिति को कम करने से शेष कर्मस्थिति कर्मनिषेककाल होता है । अन्तरायकर्म के विषय में ज्ञानावरणीय कर्म की तरह समझ लेना चाहिए । [ २८४] भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या स्त्री बांधती ? पुरुष बांधता है, अथवा नपुंसक बांधता है ? अथवा नो- स्त्री - नोपुरुष - नोनपुंसक बांधता है ? गौतम ! ज्ञानावरणीयकर्म को स्त्री भी बांधती है, पुरुष भी बांधता है और नपुंसक भी बांधता है, परन्तु जो नोस्त्रीनोपुरुष - नोनपुंसक होता है, वह कदाचित् बांधता है, कदाचित् नहीं बांधता । इस प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों के विषय में समझना चाहिए । भगवन् ! आयुष्यकर्म को क्या स्त्री बांधती है, पुरुष बांधता है, नपुंसक बांधता है अथवा नोस्त्री - नोपुरुष - नोनपुंसक बांधता है ? गौतम ! आयुष्यकर्म स्त्री कदाचित् बांधती है और कदाचित् नहीं बांधती । इसी प्रकार पुरुष और नपुंसक के विषय में भी कहना चाहिए । नोस्त्री - नोपुरुष - नोनपुंसक आयुष्यकर्म को नहीं बांधता । भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म क्या संयत बांधता है, असंयत बांधता है, संयता-संयत बांधता है अथवा नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत बांधता है ? गौतम ! संयत कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता, किन्तु असंयत बांधता है, संयतासंयत भी बांधता है, परन्तु नोसंयत-नो असंयत - नोसंयता- संयत नहीं बांधता । इस प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों के विषय में समझना । आयुष्यकर्म के सम्बन्ध में नीचे के तीनके लिए भजना समझना । नोसंयत-नो असंयत-नोसंयतासंयत आयुष्यकर्म को नहीं बांधते । भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म क्या सम्यग्दृष्टि बांधता है, मिथ्यादृष्टि बांधता है अथवा सम्यग् - मिथ्यादृष्टि बांधता है ? गौतम ! सम्यग्दृष्टि कदाचित् बांधता है, कदाचित् नहीं बांधता, मिथ्यादृष्टि बांधता है और सम्यग् - मिथ्यादृष्टि भी बांधता है । इसी प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों के विषय में समझना । आयुष्यकर्म को नीचे के दो - भजना से बांध हैं सम्यग् - मिथ्यादृष्टि नहीं बांधते । भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म को क्या संज्ञी बांधता
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy