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________________ भगवती-५/-/७/२५७ कहा गया है, वही उनका अन्तरकाल समझना चाहिए । भगवन् ! शब्दपरिणत पुद्गल का अन्तर काल की अपेक्षा कितने काल का है ? गौतम ! जघन्य एक समय का, उत्कृष्टतः असंख्येय काल का अन्तर होता है । भगवन् ! अशब्दपरिणत पुद्गल का अन्तर कालतः कितने काल का होता है ? गौतम ! जघन्य एक समय का और उत्कृष्टतः आवलिका के असंख्येय भाग का अन्तर होता है । १३७ [२५८] भगवन् ! इन द्रव्यस्थानायु, क्षेत्रस्थानायु, अवगाहनास्थानायु और भावस्थानायु; इन सबमें कौन किससे कम, अधिक, तुल्य और विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे कम क्षेत्रस्थानायु है, उससे अवगाहनास्थानायु असंख्येयगुणा है, उससे द्रव्य- स्थानायु असंख्येगुणा है और उससे भावस्थानायु असंख्येयगुणा है । [२५९] क्षेत्रस्थानायु, अवगाहना - स्थानायु द्रव्यस्थानायु और भावस्थानायु; इनका अल्प- बहुत्व कहना चाहिए । इनमें क्षेत्रस्थानायु सबसे अल्प है, शेष तीन स्थानायु क्रमशः असंख्येयगुणा हैं । [२६०] भगवन् ! क्या नैरयिक आरम्भ और परिग्रह से सहित होते हैं, अथवा अनारम्भी एवं अपरिग्रही होते हैं ? गौतम ! नैरयिक सारम्भ एवं सपरिग्रह होते हैं, किन्तु अनारम्भी एवं अपरिग्रही नहीं होते । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! नैरयिक पृथ्वीकाय का यावत् सकाय का समारम्भ करते हैं, तथा उन्होंने शरीर परिगृहीत किये हुए हैं, कर्म परिगृहीत किये हुए हैं, और, सचित्त अचित्त एवं मिश्र द्रव्य परिगृहीत किये हुए हैं, इस कारण से नैरयिक आरंभ एवं परिग्रहसहित हैं, किन्तु अनारम्भी और अपरिग्रही नहीं हैं । भगवन् ! असुरकुमार क्या आरम्भयुक्त एवं परिग्रह सहित होते हैं, अथवा अनारम्भी एवं अपरिग्रही होते हैं ? गौतम ! असुरकुमार भी सारम्भ एवं सपरिग्रह होते हैं, किन्तु अनारम्भी एवं अपरिग्रही नहीं होते । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! असुरकुमार पृथ्वीका से लेकर काय तक का समारम्भ करते हैं, तथा उन्होंने शरीर परिगृहीत किये हुए हैं, कर्म परिगृहीत किये हुए हैं, भवन परिगृहीत किये हुए हैं, वे देव-देवियों, मनुष्य पुरुषस्त्रियों, तिर्यञ्च नर-मादाओं को परिगृहीत किये हुए हैं, तथा वे आसन, शयन, भाण्ड मात्रक, एवं विविध उपकरण परिगृहीत किये हुए हैं; एवं सचित्त, अचित्त तथा मिश्र द्रव्य परिगृहीत किये हुए हैं । इस कारण से वे आरम्भयुक्त एवं परिग्रहसहित हैं, किन्तु अनारम्भी और अपरिग्रही नहीं हैं । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक कहना चाहिए । नैरयिकों के समान एकेन्द्रियों के विषय में कहना चाहिए । भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव क्या सारम्भ - सपरिग्रह होते हैं, अथवा अनारम्भी एवं अपरिग्रही होते हैं ? गौतम ! द्वीन्द्रिय जीव भी आरम्भ - परिग्रह से युक्त हैं, वे अनारम्भी अपरिगृही नहीं हैं; इसका कारण भी वही पूर्वोक्त है 1 (वे षट्का का आरम्भ करते हैं) तथा यावत् उन्होंने शरीर परिगृहीत किये हुए हैं, उनके बाह्य भाण्ड, मात्रक तथा विविध उपकरण परिगृहीत किये हुए होते हैं; एवं सचित्त, अचि तथा मिश्र द्रव्य भी परिगृहीत किये हुए होते हैं । इसलिए वे यावत् अनारम्भी, अपरिग्रही नहीं होते । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में कहना चाहिए । पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव क्या आरम्भ परिग्रहयुक्त हैं, अथवा आरम्भ - परिग्रहरहित हैं ? गौतम ! पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव, आरम्भ-परिग्रह-युक्त हैं, किन्तु आरम्भपरिग्रहरहित नहीं है; क्योंकि उन्होंने
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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