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________________ भगवती-५/-/१/२१८ ११९ यावत्-उत्तर दक्षिण में वर्षाऋतु का प्रथम समय अनन्तर - पश्चात्कृत समय में होता है, इसी तरह सारा वक्तव्य कहना चाहिए । वर्षाऋतु के प्रथम समय के समान वर्षाऋतु के प्रारम्भ की प्रथम आवलिका के विषय में भी कहना । इसी प्रकार आन-पान, स्तोक, लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु; इन सबके विषय में भी समय के अभिलाप की तरह कहना चाहिए । भगवन् ! जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में हेमन्त ऋतु का प्रथम समय होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी हेमन्तऋतु का प्रथम समय होता है; और जब उत्तरार्द्ध में हेमन्त ऋतु का प्रथम समय होता है, तब क्या जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व-पश्चिम में हेमन्त ऋतु का प्रथम समय अनन्तर पुरस्कृत समय में होता है ? इत्यादि प्रश्न है । हे गौतम ! इस विषय का सारा वर्णन वर्षा ऋतु के कथन के समान जान लेना । इसी तरह ग्रीष्मऋतु का भी वर्णन कह देना । हेमन्तऋतु और ग्रीष्मऋतु के प्रथम समय की तरह उनकी प्रथम आवलिका, यावत् ऋतुपर्यन्त सारा वर्णन कहना । इस प्रकार वर्षाऋतु, हेमन्तऋतु, और ग्रीष्मऋतु; इन तीनों का एक सरीखा वर्णन है । इसलिए इन तीनों के तीस आलापक होते हैं । भगवन् ! जम्बूद्वीप के मन्दरपर्वत से दक्षिणार्द्ध में जब प्रथम 'अयन' होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी प्रथम 'अयन' होता है ? गौतम ! 'समय' के आलापक समान 'अयन' के विषय में भी कहना चाहिए; यावत् उसका प्रथम समय अनन्तर पश्चात्कृत समय में होता है; इत्यादि । 'अयन' के समान संवत्सर के विषय में भी कहना । तथैव युग, वर्षशत, वर्षसहस्त्र, वर्षशतसहस्त्र, पूर्वांग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग, अटट, अववांग, अवव, हूहूकांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अर्थनूपुरांग, अर्थनूपुर, अयुतांग, अयुत, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग, शीर्षप्रहेलिका पल्योपम और सागरोपम; के सम्बन्ध में भी कहना । भगवन् ! जब जम्बूद्वीप नामक द्वीप के दक्षिणार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी होती है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अवसर्पिणी होती है ?; और जब उत्तरार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी होती है, तब क्या जम्बूद्वीप के मन्दरपर्वत के पूर्व पश्चिम में अवसर्पिणी नहीं होती ?, उत्सर्पिणी नहीं होती ?, किन्तु हे आयुष्मान् श्रमणपुंगव । क्या वहाँ अवस्थित काल कहा गया है ? हाँ, गौतम ! इसी तरह होता है । यावत् पूर्ववत् सारा वर्णन कह देना । अवसर्पिणी के आलापक समान उत्सर्पिणी के विषय में भी कहना । [२१९] भगवन् ! लवणसमुद्र में सूर्य ईशानकोण में उदय हो कर क्या अग्निकोण में जाते हैं ?; इत्यादि प्रश्न । गौतम ! जम्बूद्वीप में सूर्यों के समान यहाँ लवणसमुद्रगत सूर्यों के सम्बन्ध में भी कहना । विशेष बात यह है कि इस वक्तव्यता में पाठ का उच्चारण इस प्रकार करना । 'भगवन् ! जब लवणसमुद्र के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है,' इत्यादि यावत् तब लवणसमुद्र के पूर्व पश्चिम में रात्रि होती है ।' इसी अभिलाप द्वारा सब वर्णन जान लेना । भगवन् ! जब लवणसमुद्र के दक्षिणार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी (काल) होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अवसर्पिणी (काल) होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी (काल) होता है, तब क्या लवणसमुद्र के पूर्व-पश्चिम में अवसर्पिणी नहीं होती ? उत्सर्पिणी नहीं होती ? किन्तु हे दीर्धजीवी श्रमणपुंगव ! क्या वहां अवस्थित काल होता है ? हाँ,
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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