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________________ स्थान-४/३/३४९ चार-चार भांगे पूर्वोक्त क्रम से कहें । पुरुष वर्ग चार प्रकार का हैं । यथा-एक पुरुष सिंह की तरह प्रव्रजित होता हैं और सिंह की तरह ही विचरण करता हैं । एक पुरुष सिंह की तरह प्रव्रजित होता हैं किन्तु श्रृंगाल की तरह विचरण करता है । एक पुरुष श्रृंगाल की तरह प्रव्रजित होता किन्तु सिंह की तरह विचरण करता हैं । एक पुरुष श्रृंगाल की तरह प्रव्रजित होता हैं औह श्रृंगाल की तरह ही विचरण करता हैं । [३५०] लोक में समान स्थान चार हैं । यथा-अप्रतिष्ठान नरकावास, जम्बूद्वीप, पालकयान विमान, सर्वार्थसिद्ध महाविमान । लोक में सर्वथा समान स्थान चार हैं । सीमंतकनरकावास, समयक्षेत्र, उडुनामकविमान, इषत्प्राग्भारापृथ्वी ।। [३५१] ऊर्ध्वलोक में दो देह धारण करने के पश्चात् मोक्ष में जानेवाले जीव चार प्रकार के हैं । यथा-पृथ्वीकायिक जीव, अप्कायिक जीव, वनस्पतिकायिक जीव, स्थूल त्रसकायिक जीव, अधोलोक और तिर्यग्लोक सम्बन्धी सूत्र इसी प्रकार कहें । [३५२] पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा- एक पुरुष लज्जा से परिषह सहन करता हैं, एक पुरुष लज्जा से मन दृढ़ रखता हैं, एक पुरुष परिषह से चलचित्त हो जाता हैं, एक पुरुष परिषह आने पर भी निश्चलमन रहता हैं । [३५३] शय्या प्रतिमायें (प्रतिज्ञायें) चार हैं । वस्त्र प्रतिमायें चार हैं । पात्र प्रतिमायें चार हैं । स्थान प्रतिमायें चार हैं । [३५४] जीव से व्याप्त शरीर चार हैं । यथा-१. वैक्रियक शरीर २. आहार शरीर, ३. तेजस शरीर और ४. कार्मण शरीर । कामर्ण शरीर से व्याप्त शरीर चार हैं । यथा-१.औदारिक शरीर, २. वैक्रियक शरीर, ३. आहारक शरीर और ४. तेजस शरीर । [३५५] लोक में व्याप्त अस्तिकाय चार हैं । यथा-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय । उत्पद्यमान चार बादरकाय लोक में व्याप्त हैं । यथा-पृथ्वीकाय, अपकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय । [३५६] समान प्रदेश वाले द्रव्य चार हैं । यथा-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, लोकाकाश और एक जीव । [३५७) चार प्रकार के जीवों का एक शरीर आँखों से नहीं देखा जा सकता । यथापृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय और वनस्पतिकाय । [३५८] चार इन्द्रियों से ज्ञान पदार्थों का सम्बन्ध होने पर ही होता है । यथाश्रोत्रेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय, और स्पर्शेन्द्रिय । [३५९] जीव और पुद्गल चार कारणों से लोक के बाहर नहीं जा सकते । यथा-गति का अभाव होने से, सहायता का अभाव होने से, रुक्षता से, लोक की मर्यादा होने से । [३६०] ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार के हैं । यथा-जिस दृष्टान्त से अव्यक्त अर्थ व्यक्त किया जाय । जिस दृष्टान्त से वस्तु के एकदेश का प्रतिपादन किया जाय । जिस दृष्टान्त से सदोष सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जाय । जिस दृष्टान्त से वादी द्वारा स्थापित सिद्धान्त का
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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