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________________ स्थान-४/३/३४२ ८५ सम्पन्न । इनके चार-चार भांगे पूर्वोक्त क्रम से कहें । ___ फल चार प्रकार के हैं । यथा-आंबले जैसा मधुर, दाख जैसा मधुर, दूध जैसा मधुर, खांड जैसा मधुर । इसी प्रकार आचार्य चार प्रकार के हैं । यथा-मधुर आंबले के समान जो आचार्य है वे मधुर-भाषी हैं और उपशान्त हैं । मधुर दाख समान जो आचार्य हैं वे अधिक मधुरभाशी हैं और अधिक उपशान्त हैं । मधुर दूध के समान जो आचार्य हैं वे विशेष मधुरभाषी हैं और अत्यधिक उपशान्त हैं । मधुर शर्करा समान जो आचार्य हैं वे अधिकतम मधुरभाषी है और अधिक उपशान्त हैं । पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा- एक पुरुष अपनी सेवा करता हैं किन्तु दूसरे की नहीं करता । एक पुरुष दूसरे की सेवा करता हैं अपनी नहीं करता । एक पुरुष अपनी सेवा भी करता हैं और दूसरे की भी करता हैं । एक पुरुष अपनी सेवा भी नहीं करता और दूसरे की भी नहीं करता । ___पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष दूसरे की सेवा करता है किन्तु अपनी सेवा नहीं करवाता । एक पुरुष दूसरे से सेवा करवाता हैं किन्तु स्वयं सेवा नहीं करता । एक पुरुष दूसरे की सेवा भी करता है और दूसरे से सेवा करवाता हैं । एक पुरुष न दूसरे की सेवा करता हैं और न दूसरे से सेवा करवाता हैं । पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष कार्य करता हैं किन्तु मान नहीं करता । एक पुरुष मान करता हैं किन्तु कार्य नहीं करता । एक कार्य भी करता है और मान भी करता हैं । एक कार्य भी नहीं करता है और मान भी नहीं करता है ।। पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष (श्रमण) गण के लिये आहारादि का संग्रह करता हैं किन्तु मान नहीं करता, एक पुरुष गण के लिये संग्रह नहीं करता किन्तु मान करता हैं । एक पुरुष गण के लिये भी संग्रह करता है और मान भी करता है । एक पुरुष गण के लिए संग्रह भी नहीं करता और अभिमान भी नहीं करता हैं । पुरुष चार प्रकार के होते हैं । यथा-एक पुरुष निर्दोष साधु समाचारी का पालन करके गण की शोभा बढ़ाता हैं और मान नहीं करता । एक पुरुष मान करता हैं किन्तु गण की शोभा नहीं बढ़ाता है । एक पुरुष गण की शोभा भी बढ़ाता हैं और मान भी करता हैं । एक पुरुष गण की शोभा भी नहीं बढ़ाता और मान भी नहीं करता । पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष (श्रमण) गण की शुद्धि (यथा योग्य प्रायश्चित देकर) करता हैं किन्तु मान नहीं करता । शेष तीन भांगे पूर्वोक्त कहें । पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष साधु वेष छोड़ता हैं किन्तु चारित्र धर्म नहीं छोड़ता । एक पुरुष चारित्र धर्म छोड़ता है किन्तु साधु वेष नहीं छोड़ता । एक पुरुष साधु वेष भी छोड़ता हैं और चारित्र धर्म भी छोड़ता हैं । एक पुरुष साधु वेष भी नहीं छोड़ता और चारित्र धर्म भी नहीं छोड़ता । ___ पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष (श्रमण) सर्वज्ञ धर्म को छोड़ता है किन्तु गण की मर्यादा को नहीं छोड़ता हैं । एक पुरुष सर्वज्ञ कथित धर्म को नहीं छोड़ता है किन्तु गण की मर्यादा को छोड़ देता हैं । एक पुरुष सर्वज्ञ कथित धर्म भी छोड़ देता है और गण की मर्यादा भी छोड़ देता हैं । एक पुरुष सर्वज्ञ कथित धर्म भी नहीं छोड़ता हैं और गण की
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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