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________________ स्थान- ४/१/२८८ ६९ [ २८८] गोरस विकृतियां चार हैं । उनके नाम ये हैं : १. दूध, २. दधि, ३ . धृत और ४. नवनीत । स्निग्ध विकृतियां चार हैं । उनके नाम ये हैं तैल, घृत, चर्बी और नवनीत । महाविकृतियां चार हैं । उनके नाम ये हैं- मधु, मांस, मद्य और नवनीत । [ २८९] कूटागार गृह चार प्रकार के हैं- गुप्त - प्राकार से आवृत्त और गुप्त द्वार वाला, गुप्त - प्राकार से आवृत्त किन्तु अगुप्त द्वावाला, अगुप्त - प्राकार रहित किन्तु गुप्त द्वारवाला हैं । अगुप्त - प्राकार रहित हैं और अगुप्त द्वारवाला हैं । इसी प्रकार पुरुष वर्ग भी चार प्रकार का हैं । एक पुरुष गुप्त (वस्त्रावृत ) हैं और गुप्तेन्द्रिय भी हैं । एक पुरुष गुप्त हैं किन्तु अगुप्तेन्द्रिय हैं । एक पुरुष अगुप्त हैं किन्तु गुप्तेन्द्रिय हैं । और एक पुरुश अगुप्त भी हैं और अगुप्तेन्द्रिय भी हैं । कूटागारशाला चार प्रकार की हैं । वे इस प्रकार है- गुप्त है और गुप्त द्वार वाली है । गुप्त है किन्तु गुप्त द्वारा वाली नहीं हैं । अगुप्त हैं किन्तु गुप्तद्वारवाली है । अगुप्त भी है और गुप्तद्वार वाली भी नहीं है । इसी प्रकार स्त्री समुदाय भी चार प्रकार का हैं । है- एक गुप्ता हैं - वस्त्रावृता हैं और गुप्तेन्द्रिया हैं । एक गुप्ता हैं - वस्त्रावृता हैं किन्तु गुप्तेन्द्रियां नहीं है । एक अगुप्ता हैं-वस्त्रादि से अनावृत हैं किन्तु गुप्तेन्द्रिया है । एक अगुप्ता भी हैं और अगुप्तेन्द्रिया भी हैं । [२९०] अवगाहना ( शरीर का प्रमाण) चार प्रकार की हैं यह इस प्रकार की हैंद्रव्यावगाहना- अनंतद्रव्ययुता, क्षेत्रावगाहना- असंख्यप्रदेशागाढ़ा, कालावगाहनाअसंख्यसमय-स्थितिका, भावावगाहना - वर्णादि अनंतगुणयुता । [२९१] चार प्रज्ञप्तियां अङ्गबाह्य हैं । उनके नाम ये हैं- चंद्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति द्वीपसारणप्रज्ञप्ति । स्थान- ४- उद्देशक - २ [२९२] प्रतिसंलीन पुरुष चार प्रकार के हैं । क्रोधप्रतिसंलीत-क्रोध का निरोध करनेवाला । मानप्रतिसंलीन-मान का निरोध करनेवाला । मायाप्रतिसंलीन-माया का निरोध करनेवाला । लोभप्रतिसंलीन- लोभ का निरोध करनेवाला । अप्रतिसंलीन ( कषाय का निरोध न करनेवाला) पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं । क्रोख अप्रतिसंलीन, मान अप्रतिसंलीन, माया अप्रतिसंलीन और लोभ अप्रतिसंलीन । प्रतिसंलीन ( प्रशस्त प्रवृत्तियों में प्रवृत्त और अप्रशस्त प्रवृत्तियों से निवृत्त) पुरुष वर्ग चार प्रकार का हैं । मन प्रतिसंलीन, वचन प्रतिसंलीन, काय प्रतिसंलीन और इन्द्रिय प्रतिसंलीन । अप्रतिसंलीन ( अप्रशस्त कार्यों में प्रवृत्त और प्रशस्त कार्यों से उदासीन) पुरुष वर्ग चार प्रकार का है । मन अप्रतिसंलीन, वचन अप्रतिसंलीन, काय अप्रतिसंलीन और इन्द्रिय अप्रतिसंलीन । [२९३] पुरुष वर्ग चार प्रकार है । एक पुरुष दीन हैं ( धनहीन है) और दीन हैं ( हीन मना है) । एक पुरुष दीन हैं ( धनहीन है) किन्तु अदीन हैं ( महामना है) । एक पुरुष अदीन हैं ( धनी है) किन्तु दीन हैं ( हीनमना है ) । एक पुरुष अदीन है ( धनी है) और अदीन ( महामना भी है ) । पुरुष वर्ग चार प्रकार का हैं । पुरुष दीन हैं ( प्रारम्भिक जीवन में भी निर्धन हैं) और दीन हैं (अंतिम जीवन में भी निर्धन हैं) । एक पुरुष दीन है ( प्रारम्भिक जीवन में निर्धन हैं) किन्तु अदीन भी हैं (अंतिम जीवन में धनी हो जाता हैं) एक पुरुष अदीन हैं
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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