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________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद हिरण्यवास और ऐश्वत । जम्बूद्वीपवर्ती मेरुपर्वत के दक्षिण में तीन वर्षघर पर्वत हैं, यथा-लघुहिमवान, महाहिमवान और निषध । जम्बूद्वीपवर्ती मेरुपर्वत के उत्तर में तीन वर्षधर पर्वत हैं; यथा-नीलवान, रुक्मी और शिखरी । जम्बूद्वीपवर्ती मेरुपर्वत के दक्षिण में तीन महाह्रद हैं, यथा-पद्महद, महापद्महद और तिगिच्छद । वहां तीन महर्द्धिक-यावत्-पल्योपम की स्थिति वाली तीन देवियां रहती हैं, यथा-श्री, ह्री और धृति । इसी तरह उत्तर में भी तीन ह्रद हैं, यथा-केशरी ह्रद, महापुण्डरीक ह्रद और पुण्डरीक ह्रद । इन ह्रदों में रहनेवाली देवियों के नाम, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में लघु हिमवान वर्षधर पर्वत के पद्महद नामक महाह्रद से तीन महानदियां निकलती हैं, यथा-गंगा, सिन्धु और रोहितांशा । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में शिखरीवर्षधर पर्वत के पौण्डरीक नामक महाह्रद से तीन महानदियां निकलती हैं, यथा-सुवर्णकूला, रक्ता और रक्तवती । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पूर्व में सीता महानदी के उत्तर में तीन अन्तर नदियां कही गई हैं, यथा-तप्तजला, मत्तजला और उन्मत्तजला । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पश्चिम में शीतोदा महानदी के दक्षिण में तीन अन्तर नदियां हैं, क्षीरोदा, शीतस्त्रोता, और अन्तर्वाहिनी । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पश्चिम में शीतोदा महानदी के उत्तर में तीन अन्तर नदियां हैं, उर्मिमालिनी, फेनमालिनी और गंभीरमालिनी । इस प्रकार धातकी खण्डद्वीप के पूर्वार्ध में अकर्ममूमियों से लगाकर अन्तर नदियों तक यावत्अर्धपुष्कर द्वीप के पश्चिमार्ध में भी इसी प्रकार जानना । [२१२] तीन कारणों से पृथ्वी का थोड़ा भाग चलायमान होता हैं, यथा-रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे बादर पुद्गल आकर लगे या वहां से अलग होवे तो वे लगने या अलग होनेवाले बादर पुद्गल पृथ्वी के कुछ भाग को चलायमान करते हैं, महा ऋद्धिवाला-यावत्-महेश कहा जानेवाला महोरग देव इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे आवागमन करे तो पृथ्वी चलायमान होती हैं, नागकुमार तथा सुवर्णकुमार का संग्राम होने पर थोड़ी पृथ्वी चलायमान होती हैं ।। तीन कारणों से पूर्ण पृथ्वी चलायमान होती हैं,यथा-इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे घनवात क्षुब्ध होने से घनोदधि कम्पित होता हैं । कम्पित होता हुआ घनोदधि समग्र पृथ्वी को चलायमान करता हैं । महर्धिक-यावत-महेश कहा जाने वाला देव तथारूप-श्रमण-माहन को ऋद्धि, यश, बल, वीर्य, पुरषाकार पराक्रम बताता हुआ समग्र पृथ्वी को चलायमान करता हैं । देव तथा असुरों का संग्राम होने पर समस्त पृथ्वी चलायमान होती हैं । [२१३] किल्विषिक देव तीन प्रकार के कहें गये हैं, यथा-तीन पल्योपम की स्थितिवाले, तीन सागरोपम की स्थितिवाले, तेरह सागरोपम की स्थितिवाले ।। हे भगवन् ! तीन पल्योपम की स्थितिवाले किल्विषिक देव कहां रहते हैं ? ज्योतिष्क देवों के ऊपर और सौधम-ईशानकल्प के नीचे तीन पल्योपम की स्थितिवाले किल्विषिक देव रहत हैं । हे भगवन् ! तीन सागरोपम की स्थितिवाले किल्विषिक देव कहां रहते हैं ? सौधर्म ईशान देवलोक के ऊपर और सनत्कुमार-माहेन्दकल्प के नीचे तीन सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव रहते हैं । तेरह सागरोपम स्थितिवाले किल्विषिक देव कहां रहते हैं । ब्रह्मलोक कल्प के ऊपर और लान्तक कल्पके नीचे यह किल्विषिक देव रहते हैं ।
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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