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________________ स्थान- ३/२/१७६ कालसंयोग, अवधि दर्शन से देखना, अवधिज्ञान से जानना । तीन दिशाओं में जीवों को अजीवों का ज्ञान होता हैं, यथा-ऊर्ध्व दिशा में, अधोदिशा में और तिर्छौ दिशा में । (तीनों दिशाओं में गति आदि तेरह पद समस्त रुप से चौवीस दण्डकों में से पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक और मनुष्य में ही होते हैं) [ १७७] त्रस जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-तेजस्काय, वायुकाय और उदार (स्थूल ) स प्राणी । ४९ स्थावर तीन प्रकार के कहे गये है, यथा- पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय । [१७८ ] तीन अच्छेद्य हैं-समय, प्रदेश और परमाणु । इसी तरह इन तीनो का भेदन नहीं हो सकता, इसे जलाया नहीं जा सकता, इसे ग्रहण नहीं किया जा शकता एवं ईन का मध्यभाग नहीं हो सकता और यह तीनो अप्रदेशी है । तीन अविभाज्य हैं, यथा समय, प्रदेश और परमाणु । [१७९] हे आर्यो ! इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर गौतमादि श्रमण निर्ग्रन्थों को सम्बोधित कर इस प्रकार बोले हे श्रमणो ! प्राणियों को किससे भय हैं ? (तब ) गौतमादि श्रमणनिर्ग्रन्थ श्रमण भगवान् महावीर के समीप आते हैं और वन्दना - नमस्कार करते हैं । वे इस प्रकार बोले :- हे देवानुनिप्रय ! यह अर्थ हम जानते नहीं हैं देखते नहीं हैं इसलिये यदि आपको कहने में कष्ट न होता हो तो हम यह बात आप श्री से जानना चाहते हैं । आर्यो ! यों श्रमण भगवान् महावीर गौतमादि श्रमणनिर्ग्रन्थों को सम्बोधित करके इस प्रकारबोले- हे श्रमणो ! प्राणी दुःख से डरने वाले हैं । हे भगवन् ! यह दुःख किस के द्वारा दिया गया हैं ? (भगवान् बोले ) जीव ने प्रमाद के द्वारा दुःख उत्पन्न किया हैं । हे भगवान् ! यह दुःख कैसे नष्ट होता हैं ? अप्रमाद से दुःख का क्षय होता हैं । [१८०] हे भगवन् ! अन्य तीर्थिक इस प्रकार बोलते हैं, कहते हैं, प्रज्ञप्त करते हैं और प्ररूपणा करते हैं कि श्रमण-निर्ग्रन्थों के मत में कर्म किस प्रकार दुःख रूप होते हैं ? ( चारभंगो में से जो पूर्वकृत कर्म दुख रूप होते हैं यह वे नहीं पूछते हैं, जो पूर्वकृत कर्म दुख रूप नहीं होते हैं यह भी वे नहीं पूछते हैं, जो पूर्वकृत नहीं हैं परन्तु दुख रूप होते हैं उसके लिए वे पूछते हैं । अकृतकर्म को दुख का कारण मानने वाले वादियों का यह कथन हैं कि कर्म किये बिना ही दुःख होता हैं, कर्मो का स्पर्श किये बिना ही दुःख होता हैं, किये जानेवाले और किये कर्मो के बिना ही दुःख होता हैं, प्राणी, भूत, जीव और सत्व द्वारा कर्म किये बिना ही वेदना का अनुभव करते हैं- ऐसा कहना चाहिये । हुए (भगवान् बोले ) जो लोग ऐसा कहते हैं वे मिथ्या कहते हैं । मैं ऐसा कहता हूं, बोलता हूं और प्ररूपणा करता हूं कि कर्म करने से दुख होता हैं. कर्मों का स्पर्श करने से दुख होता हैं, क्रियमाण और कृत कर्मों से दुःख होता हैं, प्राण, भूत, जीव और सत्वकर्म करके वेदना का अनुभव करते हैं । ऐसा कहना चाहिए । स्थान- ३ - उद्देशक - ३ [१८१] तीन कारणों से मायावी माया करके भी आलोचना नहीं करता हैं, प्रतिक्रमण नहीं करता, निन्दा नहीं करता, गर्हा नहीं करता, उस विचार को दूर नहीं करता हैं, शुद्धि नहीं 24
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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