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________________ स्थान-३/२/१६२ ४७ भी परिषद् जानें । देवराज देवेन्द्र शक्र की तीन परिषद् कही गई हैं, यथा-समिता, चण्डा और जाया । इसी प्रकार अग्रमहिषी पर्यन्त चमरेन्द्र के समान तीन परिषद् कहना चाहिए । इसी तरह अच्युत के लोकपाल पर्यन्त तीन परिषद् समझनी चाहिए । [१६३] तीन याम कहे गये हैं, यथा-प्रथम याम, मध्यम याम और अन्तिम याम । तीन यामों में आत्मा केवलि-प्ररूपित धर्म सुन सकता हैं, यथा-प्रथम याम में, मध्यम याम में और अन्तिम याम में । इसी तरह-यावत्-आत्मा तीन यामों में केवलज्ञान उत्पन्न करता हैं, यथा- प्रथम याम में, मध्यम याम में और अन्तिम याम में । तीन वय कही गई हैं, प्रथम वय, मध्यम वय और अन्तिम वय । इन तीनों वय में आत्मा केवलि-प्रज्ञप्त धर्म सुन पाता है, प्रथमवय, मध्यमवय और अन्तिमवय । केवलज्ञान उत्पन्न होने तक का कथन पहले के समान ही जानना । [१६४] बोधि तीन प्रकार की कही गई हैं । यथा-ज्ञान बोधि, दर्शन बोधि और चारित्र बोधि । तीन प्रकार के बुद्ध कहे गये हैं, यथा-ज्ञानबुद्ध, दर्शनबुद्ध और चारित्रबुद्ध । इसी तरह तीन प्रकार का मोह और-तीन प्रकार के मूढ समझना । [१६५] प्रवज्या तीन प्रकार की कही गई है, यथा-इहलोकप्रतिबद्धा, परलोक प्रतिबद्धा, उभय-लोकप्रतिबद्धा । तीन प्रकार की प्रव्रज्या कही गई है, यथा-पुरतः प्रतिबद्धा, मार्गतः प्रतिबद्धा उभयतः प्रतिबद्धा । तीन प्रकार की प्रव्रज्या कही गई हैं, व्यथा उत्पन्न कर दी जानेवाली दीक्षा, अन्यत्र ले जाकर दी जानेवाली दीक्षा, धर्मतत्व समझा कर दी जानेवाली दीक्षा । तीन प्रकार की प्रव्रज्या है, सद्गुरुओं की सेवा के लिए ली गई दीक्षा, आख्यानप्रव्रज्याधर्मदेशना के दियेजानेसे ली गई दीक्षा, संगार प्रव्रज्या-संकेत से ली गई दीक्षा । [१६६] तीन निर्ग्रन्थ नोसंज्ञोपयुक्त हैं, यथा-पुलाक, निर्ग्रन्थ और स्नातक । तीन निर्ग्रन्थ संज्ञ-नोसंज्ञोपयुक्त (संज्ञा और नोसंज्ञा दोनों से संयुक्त) कहे गये हैं । यथा-बकुश, प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील । [१६७] तीन प्रकार की शैक्ष-भूमि कही गई हैं, यथा-उत्कृष्ट छ: मास, मध्यम चार मास जघन्य सात रात-दिन । ती स्थविर भूमियां कही गई हैं, यथा-जातिस्थविर, सूत्रस्थविर और पर्यायस्थविर | साठ वर्ष की उम्रवाला श्रमण-निर्ग्रन्थ सूत्रस्थविर हैं, स्थांनांग समवायांग को जाननेवाला श्रमणनिर्ग्रन्थ सूत्रस्थविर हैं, बीस वर्ष की दीक्षावाला श्रमणनिर्ग्रन्थ पर्यायस्थविर है । [१६८] तीन प्रकार के पुरुष कहे गये है । यथा, सुमना (हर्षयुक्त) दुर्मना (दुःख या द्वेषयुक्त) नो-सुमना-नो-दुर्मना (समभाव रखनेवाला)। तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं, यथा- कितनेक किसी स्थान पर जाकर सुमना होते हैं, कितनेक किसी स्थान पर जाकर दुर्मना होते हैं, कितनेक किसी स्थान पर जाकर नो सुमनानो दुर्मना होते हैं । तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं, यथा-कितनेक 'किसी स्थान पर जाता हूँ ऐसा मान कर सुमना होते हैं, कितनेक 'किसी स्थान पर जाता हूँ' ऐसा मान कर दुर्मना होते हैं, कितनेक
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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