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________________ स्थान-२/३/९६ ३३ कहा वैसे यहाँ भी कहना चाहिए -यावत्-दो क्षेत्र में मनुष्य छ: प्रकार के काल का अनुभव करते हुए रहते हैं, उनके नाम-भरत और ऐश्वत । विशेषता यह है कि वहाँ कूटशाल्मली और धातकी वृक्ष हैं । देवता गरुड़ (वेणुदेव) और सुदर्शन । धातकीखंड के पश्चिमार्ध में और मेरु पर्वत के उत्तर-दक्षिण में दो क्षेत्र कहे गये हैं जो परस्पर अति तुल्य हैं-यावत-उनके नाम- भरत और ऐवत-यावत-दो क्षेत्रों में मनुष्य छ: प्रकार के काल का अनुभव करते हुए रहते हैं, यथा- भरत और ऐवत । विशेषता यह है कि यहाँ कूटशाल्मली और महाधातकी वृक्ष हैं और देव गरुड वेणुदेव तथा प्रियदर्शन हैं । धातकी खण्ड द्वीप की वेदिका दो कोस की ऊंचाई वाली कही गई है । धातकीखंड द्वीप में क्षेत्र १. दो भरत, २. दो ऐवत, ३.दो हिमवंत, ४. दो हिरण्यवंत, ५. दो हरिवर्ष, ६. दो रम्यक्वर्ष, ७. दो पूर्व विदेह, ८. दो अपर विदेह, ९. दो देव कुरु । १०. दो देवकुरु महावृक्ष, ११. दो देवकुरु महावृक्षावासी देव, १२. दो उत्तरकुरु, १३. दो उत्तरकुरु महावृक्ष, १४. दो उत्तरकुरु महावृक्षवासी देव, १५. दो लघु हिमवंत, १६. दो महा हिमवंत, १७. दो निषध, १८. दो नीलवंत, १९. दो रुक्मी, २०. दो शिखरी, २१.दो शब्दापाती २२.दो शब्दापाती वासी “स्वातीदेव" २३. दो विकटापाती । २४. दो विकटापाती वासी, २५. दो गंधापाती, २६. दो गंधापाती वासी, २७. दो माल्यवान पर्वत, २८. दो माल्यवान वासी “पद्मदेव", २९. दो माल्यवान, ३०. दो चित्रकूट स्कार पर्वत । ३१. दो पद्मकूट ३२. दो नलिनीकूट ३३. दो एकशैल ३४. दो त्रिकूट ३५. दो वैश्रमण कूट ३६. दो अंजन कूट ३७.दो मातंजनकूट ३८. दो सौमनस ३९. दो विद्युत्प्रभ ४०. दो अंकापाती कूट ४१. दो पक्ष्मापाती कूट ४२. दो आशीविष कूट ४३. दो सुखावह कूट ४४. दो चंद्र पर्वत ४५. दो सूर्य पर्वत ४६. दो नाग पर्वत ४७. दो देव पर्वत ४८. दो गंधमादन ४९. दो इषुकार पर्वत ५०. दो लघु हिमवान कूट ५१. दो वैश्रमणकूट ५२. दो महाहिमवान कूट ५३. दो वैडूर्य कूट ५४. दो निषध कूट ५५. दो रुचक कूट ५६. दो नीलवंत कूट ५७. दो उपदर्शन कूट ५८. दो रुक्मीकूट ५९. दो मणिकंचन कूट ६०. दो शिखरीकूट ६१. दो तिगिच्छकूट ६२. दो पद्महद, ६३. दो पद्म ह्रदवासी "श्री देवी," ६४. दो महापद्म ह्रद, ६५. दो महापद्म हृदवासी “ही देवी", ६६. दो पौंडरीक ह्रद, ६७.दो पौंडरीक ह्रदवासी “लक्ष्मीदेवी", ६८. दो महा पौंडरीक हृद, ६९. दो महा पौंडरीक हृदवासी, ७०. दो तिगिच्छ हृद, ७१. दो तिगिच्छ हृदवासी, ७२. दो केसरी ह्रद, ७३. दो केसरी हृदवासी । ७४. दो गंगा प्रपात हृद ७५. दो सिंधु प्रपात ह्रद ७६. दो रोहिता प्रपात हृद ७७. दो रोहितांश प्रपात हद ७८. दो हरि प्रपात हद ७९.दो हरिकांता प्रपात हृद ८०. दो शीता प्रपात ह्रद ८१. दो शीतोदा प्रपात ह्रद ८२. दो नरकांता प्रपात ह्रद ८३. दो नारीकांता प्रपात हृद ८४. दो सूवर्ण कूला प्रपात हृद ८५. दो रूप्यकूला प्रपात ह्रद ८६. दो रक्ता प्रपात हृद ८७. दो स्क्तावती प्रपात हृद ८८. दो रोहिता महानदी ८९. दो हरिकांता ९०. दो हरिसलिला ९१. दो शीतोदा ९२. दो शीता ९३ दो नारीकांता ९४. दो नरकांता ९५. दो रूप्यकूला ९६. दो गाथावती ९७. दो द्रहवती ९८. दो पंकवती ९९. दो तप्तजला १०० दो मत्तजला १०१ दो उन्मत्त 12|3||
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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