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________________ ३० आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद वैताढ्य पर्वत हैं जो अति- समान हैं- यावत्-जिनके नाम, गन्धापाती और माल्यवंत पर्याय । वहां महाऋद्धि वाले-यावत् पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं, अरुण और पद्म । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में और देवगुरु के पूर्व और पश्चिम में अश्वस्कन्ध के समान अर्धचन्द्र की आकृति वाले दो वक्षस्कार पर्वत हैं जौ परस्पर अति समान हैं - यावत्उनके नाम । सौमनस और विद्युत्प्रभ । जम्बूद्वीपवर्त्ती मेरु पर्वत के उत्तर में तथा कुरु के पूर्व और पश्चिम भाग में अश्व स्कन्ध के समान, अर्धचन्द्र की आकृति वाले दो वक्षस्कार पर्वत हैं जो परस्पर अतिसमान यावत् नाम । गन्धमादन और माल्यवान । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो दो दीर्घ वेताढ्य पर्वत हैं जो अतितुल्य हैं - यावत्-उनके नाम, यथा- भरत दीर्घ वैताढ्य और ऐखत दीर्घ वैताढ्य । उस भरत दीर्घ वैताढ्य में दो गुफाएं कही गई हैं जो अति तुल्य, अविशेष, विविध रहित और एक दूसरी की लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई, संस्थान और परिधि में अतिक्रम न करनेवाली हैं, उनके नाम । तिमिस्त्र गुफा और खण्ड- प्रपात गुफा । वहां महर्धिक - यावत्पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं, नाम । कृतमालक और नृत्यमालक । एवत-दीर्घ वैताढ्य में दो गुफाएं हैं जो अतिसमान हैं - यावत् कृतमालक और नृत्यमालक देव है । जम्बूद्वीपवर्त्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में लघुहिमवान् वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं जो परस्पर अति तुल्य - यावत् - लम्बाई-चौड़ाई, ऊंचाई संस्थान और परिधि में एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करनेवाले हैं, उनके नाम - लघुहिमवान्कूट और वैश्रमणकूट । जम्बूद्वीपवर्त्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में महाहिमवान् वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं जो परस्पर अति तुल्य हैं उनके नाम - महाहिमवनकूट और वैडूर्यकूट । इसी तरह निषध वर्षघर पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं जो अति तुल्य हैं- यावत् उनके नाम । निषधकूट और रुचकप्रभकूट । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में नीलवान वर्षधर पर्वत पर दो कूट हैं जो अति तुल्य हैं - यावत्-उनके नाम । नीलवंतकूट और उपदर्शकूट । इसी तरह रुक्मिकूट वर्षधर पर्वत पर दो कूट हैं यावत्उनके नाम । रूक्मिकूट और मणिकांचनकूट । इसी तरह शिखरी वर्षधर पर्वत पर दो कूट हैं जो यावत्-उनके नाम, शिखरीकूट और तिगिच्छकूट । [८८] जम्बूद्वीपवर्त्ती मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में लघुहिमवान् और शिखरी वर्षधर पर्वतों में दो महान् द्रह हैं जो अति-सम, तुल्य, अविशेष, विचित्रतारहित और लम्बाईचौड़ाई गहराई, संस्थान एवं परिधि में एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करनेवाले हैं, उनके नाम । पद्मद्रह और पुण्डरीक ग्रह । वहाँ महाऋद्धि वाली - यावत् - पल्योपम की स्थिति वाली दो देवियां रहती हैं, उनके नाम । श्री देवी और लक्ष्मी देवी । इसी तरह महाहिमवान् और रुक्मि वर्षधर पर्वतों पर दो महाग्रह हैं जो अतिसमाह हैं - यावत्-उनके नाम, महापद्म द्रह और महापुण्डरिक द्रह । देवियों के नाम । ह्री देवी और वृद्धि देवी । इसी तरह निषध और नीलवान पर्वतों मेंतिगच्छ द्रह और केसरी द्रह । देवियाँ 'धृति' और कीर्ति । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के महापद्म द्रह में दो महानदियां प्रवाहित होती हैं, उनके नाम । रोहिता और हरिकान्ता । इसी तरह निषध वर्षधर पर्वत के तिगिच्छ, द्रह में से दो महानदियाँ प्रवाहित होती हैं, नाम । हरिता और शीतोदा । जम्बूद्वीपवर्ती मेरुपर्वत के उत्तर में नीलवान् वर्षधर पर्वत के केसरी द्रह में से दो महानदियाँ
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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