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________________ २५२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद में भी रहेगा । अतएव यह ध्रुव है, नियत है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है और नित्य है । __ इस द्वादशाङ्ग गणि-पिटक में अनन्त भाव (जीवादि स्वरूप से सत् पदार्थ) और अनन्त अभाव (पररूप से असत् जीवादि वही पदार्थ) अनन्त हेतु, उनके प्रतिपक्षी अनन्त अहेतु; इसी प्रकार अनन्त कारण, अनन्त अकारण; अनन्त जीव, अनन्त अजीव; अनन्त भव्यसिद्धिक, अनन्त अभव्यसिद्धिक; अनन्त सिद्ध तथा अनन्त असिद्ध कहे जाते हैं, प्रज्ञापित किये जाते हैं, प्ररूपित किये जाते हैं, दर्शित किये जाते है, निदर्शित किये जाते हैं और उपदर्शित किये जाते हैं । [२३४] दो राशियां कही गई हैं-जीवराशि और अजीव राशि । अजीवराशि दो प्रकार की कही गई है-रूपी अजीवराशि और अरूपी अजीवराशि । अरूपी अजीवराशि क्या है ? अरूपी अजीवराशि दश प्रकार की कही गई है । जैसेधर्मास्तिकाय यावत् (धर्मास्तिकाय देश, धर्मास्तिकायप्रदेश, अधर्मास्तिकाय, अर्धास्तिकाय देश, अधर्मास्तिकाय प्रदेश, आकाशास्तिकाय, आकाशास्तिकाय देश, आकाशस्तिकायप्रदेश) और अद्धासमय । रूपी अजीवराशि अनेक प्रकार की कही गई है... यावत् प्रज्ञापना सूत्रानुसार । जीव-राशि क्या है ? [जीव-राशि दो प्रकार की कही गई है-संसारसमापन्नक (संसारी जीव) और असंसार समापन्नक (मुक्त जीव) । इस प्रकार दोनों राशियों के भेद-प्रभेद प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार अनुत्तरोपपातिक सूत्र तक जानना चाहिए । वे अनुत्तरोपपातिक देव क्या हैं ? अनुत्तरोपपातिक देव पांच प्रकार के कहे गये हैं । जैसे-विजय-अनुत्तरोपपातिक, वैजयन्त-अनुत्तरोपपातिक, जयन्त-अनुत्तरोपपातिक, अपराजितअनुत्तरोपपातिक और सर्वार्थसिद्धिक अनुत्तरोपपातिक । ये सब अनुत्तरोपपातिक संसार-समापन्नक जीवराशि है । यह सब पंचेन्द्रियसंसार-समापन्न-जीवराशि है ।। नारक जीव दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । यहां पर भी प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार] वैमानिक देवों तक अर्थात् नारक, असुरकुमार, स्थावरकाय, द्वीन्द्रिय आदि, मनुष्य, व्यन्तर, ज्योतिष्क तथा वैमानिक का सूत्र-दंडक कहना चाहिए । [भगवन्] इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितना क्षेत्र अवगाहन कर कितने नारकावास कहे गये हैं ? गौतम ! एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर से एक हजार योजन अवगाहन कर, तथा सबसे नीचे के एक हजार योजन क्षेत्र को छोड़कर मध्यवर्ती एक लाख अठहत्तर हजार योजन वाले रत्नप्रभा पृथ्वी के भाग में तीस लाख नारकावास हैं । वे नारकावास भीतर की ओर गोल और बाहर की ओर चौकोर हैं यावत् वे नरक अशुभ हैं और उन नरकों में अशुभ वेदनाएं हैं । इसी प्रकार सातों ही पृथ्वीयों का वर्णन जिनमें जो युक्त हो, करना चाहिए । [२३५] रत्नप्रभा पृथ्वी का बाहल्य (मोटाई) एक लाख अस्सी हजार योजन है । शर्करा पृथ्वी का बाहल्य एक लाख बत्तीस हजार योजन है । वालुका पृथ्वी का बाहल्य एक लाख अट्ठाईस हजार योजन है । पंकप्रभा पृथ्वी का बाहल्य एक लाख वीस हजार योजन है ।
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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