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________________ २३४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्तभाग से गोस्तुभ आवास पर्वत का पूर्वी चरमान्त भाग अट्ठानवै हजार योजन अन्तरवाला कहा गया है । इसी प्रकार चारों ही दिशाओं में अवस्थित आवास पर्वतों का अन्तर जानना चाहिए । दक्षिण भरतक्षेत्र का धनुःपृष्ठ कुछ कम ९८०० योजन आयाम (लम्बाई) की अपेक्षा कहा गया है । उत्तर दिशा से सूर्य प्रथम छह मास दक्षिण की ओर आता हुआ उनपचासवें मंडल के ऊपर आकर मुहूर्त के इकसठिये अट्ठानवै भाग दिवस क्षेत्र (दिन) के घटाकर और रजनी-क्षेत्र (रात) के बढ़ाकर संचार करता है । इसी प्रकार दक्षिण दिशा से सूर्य दूसरे छह मास उत्तर की ओर जाता हुआ उनपचासवें मंडल के ऊपर आकर मुहूर्त के अष्ठानवै इकसठ भाग रजनी क्षेत्र (रात) के घटाकर और दिवस क्षेत्र (दिन) के बढ़ाकर संचार करता है । खती से लेकर ज्येष्ठा तक के उन्नीस नक्षत्रों के तारे अट्ठानवै हैं । (समवाय-९९) [१७८] मन्दर पर्वत निन्यानवै हजार योजन ऊंचा कहा गया है । नन्दनवन के पूर्वी चरमान्त से पश्चिमी चरमान्त ९९०० योजन अन्तरवाला कहा गया है । इसी प्रकार नन्दन वन के दक्षिणी चरमान्त से उत्तरी चरमान्त ९९०० योजन अन्तर वाला है । उत्तर दिशा में सूर्य का प्रथम मंडल आयाम-विष्कम्भ की अपेक्षा कुछ अधिक निन्यानवै हजार योजन कहा गया है । दूसरा सूर्य-मंडल भी आयाम-विष्कम्भ की अपेक्षा कुछ अधिक निन्यानवै हजार योजन कहा गया है । तीसरा सूर्यमंडल भी आयाम-विष्कम्भ की अपेक्षा कुछ अधिक निन्यानवै हजार योजन कहा गया है । इस रत्नप्रभा पृथ्वी के अंजन कांड के अधस्तन चस्मान्त भाग से वान-व्यन्तर भौमेयक देवों के विहारों (आवासों) का उपरिम अन्तभाग ९९०० योजन अन्तरवाला कहा गया है । (समवाय-१००) [१७९] दशदशमिका भिक्षुप्रतिभा एक सौ रात-दिनों में और साढ़े पाँचसौ भिक्षादत्तियों से यथासूत्र, यथामार्ग, यथातत्व से स्पृष्ट, पालित, शोभित, तीरित, कीर्तित और आराधित होती है । शतभिषक् नक्षत्र के एक सौ तारे होते हैं । सुविधि पुष्पदन्त अर्हत् सौ धनुष ऊंचे थे । पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् एक सौ वर्ष की समग्र आयु भोग कर सिद्ध, बुद्ध, कर्म-मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त हो सर्व दुःखों से रहित हुए । इसी प्रकार स्थविर आर्य सुधर्मा भी सौ वर्ष की सर्व आयु भोग कर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त हो सर्व दुःखों से रहित हुए । सभी दीर्ध वैताढ्य पर्वत एक-एक सौ गव्यूति ऊंचे हैं । सभी क्षुल्लक हिमवन्त और शिखरी वर्षधर पर्वत एक-एक सौ योजन ऊंचे हैं । तथा ये सभी वर्षधर पर्वत सौ-सौ गव्यूति उद्धेध वाले हैं । सभी कांचनक पर्वत एक-एक सौ योजन ऊंचे कहे गये हैं तथा वे सौ-सौ गव्यूति उद्धेध वाले और मूल में एक-एक सौ योजन विष्कम्भवाले हैं । समवाय-१०० का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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