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________________ समवाय-८५/१६४ २३१ नन्दनवन के अधस्तन चरमान्त भाग से लेकर सौगन्धिक काण्ड का अधस्तन चरमान्त भाग पचासी सौ योजन अन्तरवाला कहा गया है । समवाय-८५ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (समवाय-८६) [१६५] सुविधि पुष्पदन्त अर्हत् के छयासी गण और छ्यासी गणधर थे । सुपार्श्व अर्हत् के ८६०० वादी मुनि थे । दूसरी पृथ्वी के मध्य भाग से दूसरे घनोदधिवात का अधस्तन चस्मान्त भाग छ्यासी हजार योजन के अन्तरवाला कहा गया है । समवाय-८७ [१६७] मन्दर पर्वत के पूर्वी चरमान्त भाग से गोस्तूप आवास पर्वत का पश्चिमी चरमान्त भाग सतासी हजार योजन के अन्तर वाला है । मन्दर पर्वत के दक्षिणी चरमान्त भाग से दकभास आवास पर्वत का उत्तरी चरमान्त सतासी हजार योजन के अन्तरवाला है । इसी प्रकार मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से शंख आवास पर्वत का दक्षिणी चरमान्त भाग सतासी हजार योजन के अन्तर वाला है । और इसी प्रकार मन्दर पर्वत के उत्तरी चस्मान्त से दकसीम आवास पर्वत का दक्षिणी चरमान्त भाग सतासी हजार योजन के अन्तरवाला है । आद्य ज्ञानावरण और अन्तिम (अन्तराय) कर्म को छोड़ कर शेष छहों कर्म प्रकृतियों की उत्तर प्रकृतियाँ सतासी कही गई हैं । __ महाहिमवन्त कूट के उपरिम अन्त भाग से सौगन्धिक कांड का अधस्तन चरमान्त भाग ८७०० योजन अन्तरवाला है । इसी प्रकार रुक्मी कूट के ऊपरी भाग से सौगन्धिक कांड के अधोभाग का अन्तर भी सतासी सौ योजन है । (समवाय-८८) [१६७] प्रत्येक चन्द्र और सूर्य के परिवार में अठासी-अठासी महाग्रह कहे गये हैं । दृष्टिवाद नामक बारहवें अंग के सूत्रनामक दूसरे भेद में अठासी सूत्र कहे गये हैं । जैसे ऋजुसूत्र, परिणता-परिणत सूत्र, इस प्रकार नन्दी सूत्र के अनुसार अठासी सूत्र कहना चाहिए । मन्दर पर्वत के पूर्वी चरमान्त भाग से गोस्तूप आवास पर्वत का पूर्वी चरमान्त भांग, ८८०० योजन अन्तरवाला कहा गया है । इसी प्रकार चारों दिशाओं में आवास पर्वतों का अन्तर जानना चाहिए । __बाहरी उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा को जाता हुआ सूर्य प्रथम छह मास में चवालीसवें मण्डल में पहुँचने पर मुहूर्त के इकसठिये अठासी भाग दिवस क्षेत्र (दिन) को घटाकर और रजनीक्षेत्र (रात) को बढ़ा कर संचार करता है । दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा को जाता हुआ सूर्य दूसरे छह मास पूरे करके चवालीसवें मण्डल में पहुंचने पर मुहूर्त के इकसठिये अठासी भाग रजनी क्षेत्र (रात) के घटाकर और दिवस क्षेत्र (दिन) के बढ़ा कर संचार करता है ।
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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