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________________ २२० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद मन्दर पर्वत की चारों ही दिशाओं में लवणसमुद्र की भीतरी परिधि की अपेक्षा पैंतालीस हजार योजन अन्तर विना किसी बाधा के कहा गया है । सभी व्यर्ध क्षेत्रीय नक्षत्रों ने पैंतालीस मुहूर्त तक चन्द्रमा के साथ योग किया है, योग करते हैं और योग करेंगे । [१२२] तीनों उत्तरा, पुनर्वसु, रोहिणी और विशाखा ये छह नक्षत्र पैंतालीस मुहूर्त तक चन्द्र के साथ संयोग वाले कहे गये हैं । [१२३] महालिकाविमानप्रविभक्ति सूत्र के पाँचवें वर्ग में पैंतालीस उद्देशनकाल हैं । समवाय-४५ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (समवाय-४६) [१२४] बारहवें दृष्टिवाद अंग के छियालीस मातृकापद कहे गये हैं । ब्राह्मी लिपि के छियालीस मातृ-अक्षर कहे गये हैं । वायुकुमारेन्द्र प्रभंजन के छियालीस लाख भवनावास कहे गये हैं । (समवाय-४७) [१२५] जब सूर्य सबसे भीतरी मण्डल में आकर संचार करता है, तब इस भरत क्षेत्रगत मनुष्य को सैंतालीस हजार दो सौ तिरेसठ योजन और एक योजन के साठ भागों में इक्कीस भाग की दूरी से सूर्य दृष्टिगोचर होता है । अग्निभूति स्थविर सैंतालीस वर्ष गृहवास में रह कर मुंडित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए । (समवाय-४८) [१२६] प्रत्येक चातुरन्त चक्रवर्ती राजा के अड़तालीस हजार पट्टण कहे गये हैं | धर्म अर्हत् के अड़तालीस गण और अड़तालीस गणधर थे । सूर्यमण्डल एक योजन के इकसठ भागों में से अड़तालीस भाग-प्रमाण विस्तार वाला कहा गया है । (समवाय-४९) [१२७] सप्त-सप्तमिका भिक्षुप्रतिमा उनचास रात्रि-दिवसों से और एक सौ छियानवे भिक्षाओं से यथासूत्र यथामार्ग से [यथाकल्प से, यथातत्त्व से, सम्यक् प्रकार काय से स्पर्श कर पालकर, शोधन कर, पार कर, कीर्तन कर आज्ञा से अनुपालन करे] आराधित होती है । देवकुरु और उत्तरकुरु में मनुष्य उनचास रात-दिनों में पूर्ण यौवन से सम्पन्न होते है । त्रीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट स्थिति उनचास रात-दिन की कही गई है । समवाय-५० [१२८] मुनिसुव्रत अर्हत् के संघ में पचास हजार आर्यिकाएं थीं । अनन्तनाथ अर्हत्
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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