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________________ २१६ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद ११. जहाँ-जहाँ भी अरहन्त भगवन्त ठहरते या बैठते हैं, वहाँ-वहाँ यक्ष देवों के द्वारा पत्र, पुष्प, पल्लवों से व्याप्त, छत्र, ध्वजा, घंटा और पताका से युक्त श्रेष्ठ अशोक वृक्ष का निर्मित होना । १२. मस्तक के कुछ पीछे तेजमंडल (भामंडल ) का होना, जो अन्धकार में भी दशों दिशाओं को प्रकाशित करता है । १३. जहाँ भी तीर्थंकरों का विहार हो, उस भूमिभाग का बहुसम और रमणीय होना । १४. विहार - स्थल के कांटो का अधोमुख हो जाना । १५. सभी ऋतुओं का शरीर के अनुकूल सुखद स्पर्श वाली होना । १६. जहाँ तीर्थंकर विराजते हैं, वहाँ की एक योजन भूमि का शीतल, सुखस्पर्शयुक्त सुगन्धित पवन से सर्व ओर संप्रमार्जन होना । १७. मन्द, सुगन्धित जल - बिन्दुओं से मेघ के द्वारा भूमि का धूलि - रहित होना । १८. जल और स्थल में खिलने वाले पाँच वर्ण के पुष्पों से घुटने प्रमाण भूमिभाग के पुष्पोपचार होना, अर्थात् आच्छादित किया जाना । १९. अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का अभाव होना । २०. मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का प्रादुर्भाव होना । २१. धर्मोपदेश के समय हृदय को प्रिय लगनेवाला और एक योजन तक फैलनेवाला स्वर होना । २२. अर्धमागधी भाषा में भगवान् का धर्मोपदेश देना । २३. वह अर्धमगधी भाषा बोली जाती हुई सभी आर्य अनार्य पुरुषों के लिए तथा द्विपद पक्षी और चतुष्पद मृग, पशु आदि जानवरों के लिए और पेट के बल रेंगने वाले सर्पादि के लिए अपनी-अपनी हितकर, शिवकर सुखद भाषारूप से परिणत हो जाती है । २४. पूर्वबद्ध वैर वाले भी [मनुष्य] देव, असुर, नाग, सुपर्ण, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, गरुड, गन्धर्व और महोरग भी अरहन्तों के पादमूल में प्रशान्त चित्त होकर हर्षित मन से धर्म श्रवण करते हैं । २५. अन्य तीर्थिक प्रावचनिक पुरुष भी आकर भगवान् की वन्दना करते हैं । २६. वे वादी लोग भी अरहन्त के पादमूल में वचन - रहित (निरुत्तर) हो जाते हैं । २७. जहाँ-जहाँ से भी अरहन्त भगवन्त विहार करते हैं, वहाँ-वहाँ पच्चीस योजन तक ईति - भीति नहीं होती है । २८. मनुष्यों को मारने वाली मारी (प्लेग आदि भयंकर बीमारी) नहीं होती है । २९. स्वचक्र ( अपने राज्य की सेना ) का भय नहीं होता । ३०. परचक्र (शत्रु की सेना) का भय नहीं होता । ३१. अतिवृष्टि (भारी जलवर्षा) नहीं होती । ३२. अनावृष्टि नहीं होती । ३३. दुभिक्ष ( दुष्काल) नहीं होता । ३४. भगवान् के विहार से पूर्व उत्पन्न हुई व्याधियाँ भी शीघ्र ही शान्त हो जाती हैं और रक्त वर्षा आदि उत्पात नहीं होते हैं । I जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में चक्रवर्ती के विजयक्षेत्र चौतीस कहे गये हैं । जैसे— महाविदेह में बत्तीस, भारत क्षेत्र एक और एरवत क्षेत्र एक । [इसी प्रकार ] जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में चौतीस दीर्ध वैताढ्य कहे गये हैं । जम्बूद्वीप नामक द्वीप में उत्कृष्ट रूप से चौतीस तीर्थंकर [ एक साथ] उत्पन्न होते हैं । असुरेन्द्र असुरराज चमर के चौतीस लाख भवनावास कहे गये हैं । पहिली, पाँचवी, छठी और सातवीं, इन चार पृथ्वीयों में चौंतीस लाख नारका - वास कहे गये हैं । समवाय - ३४ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण समवाय-३५ [999] पैंतीस सत्यवचन के अतिशय कहे गये हैं ।
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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