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________________ स्थान- १/-/५१ १९ वर्गणा एक है । भव्य नरक जीवों की वर्गणा एक है । अभव्य नरक जीवों की वर्गणा एक हो । इस प्रकार - यावत्-भव्य वैमानिक देवों की वर्गणा एक है । अभव्य वैमानिक देवों की वर्गणा एक है । सम्यग्दृष्टियों की वर्गणा एक है । मिथ्यादृष्टियों वर्गणा एक है । मिश्रदृष्टि वालों की वर्गणा एक है । सम्यग्दृष्टि वाले नरक जीवों की वर्गणा एक है । मिथ्यादृष्टि वोले नरक जीवों की वर्गणा एक है । मिश्रदृष्टि वाले नरक जीवों की वर्गणा एक है । इसी प्रकार - यावत् स्तनित कुमारों की वर्गणा एक है । मिथ्यादृष्टि पृथ्वीकाय जीवों की वर्गणा एक है । यावत्-वनस्पतिकाय के जीवों की वर्गणा एक है । सम्यग्दृष्टि द्वन्द्रिय जीवों की वर्गणा एक है । मिथ्यादृष्टि द्वीन्द्रिय जीवों की वर्गणा एक है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों की वर्गणा एक है । शेष नरक जीवों के समान - यावत्- मिश्रदृष्टि वाले वैमानिकों की वर्गणा एक है । - कृष्णपाक्षिक जीवों की वर्गणा एक है । शुक्लपाक्षिक जीवों की वर्गणा एक है । कृष्णपाक्षिक नरकजीवों की वर्गणा एक है । इसी प्रकार चौबीस दण्डक में समझ लेना । कृष्ण लेश्यावाले जीवों की वर्गणा एक है । नील लेश्यावाले जीवों की वर्गणा एक है । इसी प्रकार- यावत्-शुक्ल लेश्या वाले जीवों की वर्गणा एक है । कृष्णलेश्या वाले नैरयिकों की वर्गणा - यावत्- कापोतलेश्या वाले नैरयिकों की वर्गणा एक है । इस प्रकार जिसकी जितनी लेश्याएं है उसकी उतनी वर्गणा समझ लेनी चाहिए । भवनपति, वानव्यन्तर, पृथ्विकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय में चार लेश्याएं हैं । तेजस्काय, वायुकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय में तीन लेश्याएं है । तिर्यच पंचेन्द्रिय और मनुष्यों में छः लेश्याएं हैं । ज्योतिष्क देवों में एक तेजोलेश्या है । वैमानिक देवों में ऊपर की तीन लेश्याएं हैं । इनकी इतनी ही वर्गणा जाननी चाहिए । कृष्णलेश्या वाले भव्य जीवों की वर्गणा एक है । कृष्णलेश्या वाले अभव्य जीवों की वर्गणा एक है । इसी प्रकार छहों लेश्याओं में दो दो पद कहने चाहिए । कृष्णलेश्या वाले भव्य नैरयिकों की वर्गणा एक है । कृष्णलेश्या वाले अभव्य नैरयिकों की वर्गणा एक है । इस प्रकार विमानवासी देव पर्यंत जिसकी जितनी लेश्याएं हैं उसके उतने ही पद समझना । कृष्णलेश्या वाले सम्यकदृष्टि जीवों की वर्गणा एक है । कृष्णलेश्या वाले मिथ्यादृष्टि जीवों की वर्गणा एक है । कृष्णलेश्या वाले मिश्रदृष्टि जीवों की वर्गणा एक है । इस प्रकार छः लेश्याओं में जिसकी जितनी दृष्टियां हैं उसके उतने पद जानने चाहिए । कृष्यलेश्या वाले कृष्णपाक्षिक जीवों की वर्गणा एक है । कृष्णलेश्या वाले शुक्लपाक्षिक जीवों की वर्गणा एक है । इस प्रकार विमानवासी देव पर्यंत जिसकी जितनी लेश्याएं हों उतने पद समझ लेने चाहिए । ये आठ चौबीस दण्डक जानने चाहिए । तीर्थसिद्ध जीवों की वर्गणा एक है । अतीर्थसिद्ध जीवों की वर्गणा एक है - यावत्एकसिद्ध जीवों की वर्गणा एक है । अनेकसिद्ध जीवों की वर्गणा एक है । प्रथम समय सिद्ध जीवों की वर्गणा एक है - यावत् - अनंत समय सिद्ध जीवों की वर्गणा एक है । परमाणु पुद्गलों की वर्गणा एक है । इस प्रकार अन्नत प्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा - यावत्-एक है । एक प्रदेशावगाढ पुद्गलों की वर्गणा एक है - यावत्-असंख्य प्रदेशावगाढ पुद्गलों की वर्गणा एक है । एक समय की स्थिति वाले पुद्गलों की वर्गणा एक है । --
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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