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________________ समवाय- ११/१९ सुधर्म, मंडित, मौर्यपुत्र, अकम्पित, अचलभ्राता, मेतार्य और प्रभास । मूल नक्षत्र ग्यारह तारावाला कहा गया है । अधस्तन ग्रैवेयक- देवों के विमान एक सौ ग्यारह कहे गये हैं । मन्दर पर्वत धरणी-तल से शिखर तल पर ऊंचाई की अपेक्षा ग्यारहवें भाग से हीन विस्तार वाला कहा गया है । १९१ इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति ग्यारह पल्योपम कही गई है । पांचवीं धूमप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति ग्यारह सागरोपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति ग्यारह पल्योपम कही गई है । सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति ग्यारह पल्योपम है । लान्तक कल्प में कितनेक देवों की स्थिति ग्यारह सागरोपम है । वहां पर जो देव ब्रह्म, सुब्रह्म, ब्रह्मावर्त, ब्रह्मप्रभ, ब्रह्मकान्त, ब्रह्मवर्ण, ब्रह्मलेश्य, ब्रह्मध्वज, ब्रह्मश्रृंग, ब्रह्मसृष्ट ब्रह्मकूट और ब्रह्मोत्तरावतंसक नाम के विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की स्थिति ग्यारह सागरोपम है । वे देव ग्यारह अर्धमासों के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास- निःश्वास लते हैं । उन देवों को ग्यारह हजार वर्ष के बाद आहार की इच्छा होती है । कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो ग्यारह भव करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । समवाय - ११ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण समवाय- १२ I [२०] बारह भिक्षु प्रतिमाएं कही गई हैं । जैसे - एकमासिकी भिक्षुप्रतिमा, दो मासिकी भिक्षुप्रतिमा, तीन मासिकी भिक्षुप्रतिमा, चार मासिकी भिक्षुप्रतिमा, पांच मासिकी भिक्षुप्रतिमा, छह मासिकी भिक्षुप्रतिमा, सात मासिकी भिक्षुप्रतिमा, प्रथम सप्तरात्रिदिवा भिक्षुप्रतिमा, द्वितीय सप्तरात्र-दिवा प्रतिमा, तृतीय सप्तरात्रिदिवा प्रतिमा, अहोरात्रिक भिक्षुप्रतिमा और एकरात्रिक भिक्षुप्रतिमा । [२१] सम्भोग बारह प्रकारका है- १. उपधि-विषयक सम्भोग २. श्रुत-विषयक सम्भोग, ३. भक्त - पान - विषयक सम्भोग, ४. अंजली - प्रग्रह सम्भोग, ५. दान-विषयक सम्भोग, ६. निकाचन- विषयक सम्भोग, ७. अभ्युत्थान-विषयक सम्भोग. [२२] ८. कृतिकर्म-करण सम्भोग, ९. वैयावृत्त्य - करण सम्भोग, १०. समवसरण - सम्भोग, ११. संनिषद्या सम्भोग और ११. कथा - प्रबन्धन सम्भोग । [२३] कृतिकर्म बारह आवर्तवाला कहा गया है । जैसे [२४] कृतिकर्म में दो अवनत (नमस्कार), यथाजात रूप का धारण, बारह आवर्त, चार शिरोनति, तीन गुप्ति, दो प्रवेश और एक निष्क्रमण होता है । [२५] जम्बूद्वीप के पूर्वदिशावर्ती विजयद्वार के स्वामी विजयदेव की विजया राजधानी बारह लाख योजन आयाम - विष्कम्भ वाली है । राम नाम के बलदेव बारह सौ वर्ष पूर्ण आयु का पालन कर देवत्व को प्राप्त हुए । मन्दर पर्वत की चूलिका मूल में बारह योजन विस्तारवाली है । जम्बूद्वीप की वेदिका मूल में बारह योजन विस्तारवाली है ।
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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