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________________ समवाय-८/८ १८७ पार्थिव) जंबूनामक सुदर्शन वृक्ष आठ योजन ऊंचा कहा गया है । (देवकुरु में स्थित) गरुड देव का आवासभूत पार्थिव कूटशाल्मली वृक्ष आठ योजन ऊंचा कहा गया है । जम्बूद्वीप की जगती (प्राकार के समान पाली) आठ योजन ऊंची कही गई है । केवलि समुद्घात आठ समय वाला कहा गया है जैसे-केवली भगवान् प्रथम समय में दंड समुद्धात करते हैं, दूसरे समय में कपाट समुद्घात करते हैं, तीसरे समय में मन्थान समुद्घात करते हैं, चौथे समय में मन्थान के अन्तरालों को पूरते हैं, अर्थात् लोकपूरण समुद्घात करते हैं । पांचवें समय में मन्थान के अन्तराल से आत्मप्रदेशों का प्रतिसंहार (संकोच) करते हैं, छठे समय में मन्थानसमुद्घात का प्रतिसंहार करते हैं, सातवें समय में कपाट समुद्घात का प्रतिसंहार करते हैं और आठवें समय में दंडसमुद्घात का प्रतिसंहार करते हैं । तत्पश्चात् उनके आत्म-प्रदेश शरीरप्रमाण हो जाते हैं । पुरुषादानीय अर्थात् पुरुषों के द्वारा जिनका नाम आज भी श्रद्धा और आदर-पूर्वक स्मरण किया जाता है, ऐसे पार्श्वनाथ तीर्थंकर देव के आठ गण और आठ गणधर थे । यथा [९] शुभ, शुभघोष, वशिष्ठ, ब्रह्मचारी, सोम, श्रीधर, वीरभद्र और यश । [१०] आठ नक्षत्र चन्द्रमा के साथ प्रमर्द योग करते हैं । जैसे–कृत्तिका १, रोहिणी २, पुनर्वसु ३, मघा ४, चित्रा ५, विशाखा ६, अनुराधा ७, और ज्येष्ठा ८ । इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति आठ पल्योपम कही गई है । चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति आठ सागरोपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति आठ पल्योपम कही है । सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति आठ पल्योपम कही गई है ।। ब्रह्मलोक कल्प में कितनेक देवों की स्थिति आठ सागरोपम कही गई है । वहां जो देव अर्चि १, अर्चिमाली २, वैरोचन ३, प्रभंकर ४, चन्द्राभ ५, सूराभ ६, सुप्रतिष्ठाभ ७, अग्नि-अाभ ८, रिष्टाभ ९, अरुणाम १०, और अनुत्तरावतंसक ११, नाम के विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति आठ सागरोपम कही गई है । वे देव आठ अर्धमासों (पखवाड़ों) के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों के आठ हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है । कितनेक भव्यसिद्धिक जीव आठ भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । समवाय-८ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (समवाय-९) [११] ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियां (संरक्षिकाएं) कही गई हैं । जैसे-स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त शय्या और आसन का सेवन नहीं करना, स्त्रियों की कथाओं को नहीं करना, स्त्रीगणों का उपासक नहीं होना, स्त्रियों की मनोहर इन्द्रियों और रमणीय अंगो का द्रष्टा और ध्याता नहीं होना, प्रणीत-रस-बहुल भोजन का नहीं करना, अधिक मात्रा में खान-पान या आहार नहीं करना, स्त्रियों के साथ की गई पूर्व रति और पूर्व क्रीड़ाओं का स्मरण नहीं करना, कामोद्दीपक शब्दों को नहीं सुनना, कामोद्दीपक रूपों को नहीं देखना, कामोद्दीपक गन्धों को
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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