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________________ १८२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद (समवाय-२) [२] दो दण्ड हैं, अर्थदण्ड और अनर्थदण्ड । दो राशि हैं, जीवराशि और अजीवराशि । दो प्रकार के बंधन हैं, रागबंधन और द्वेषबंधन । पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र दो तारा वाला कहा गया है । उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र दो तारा वाला कहा गया है । पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र दो तारा वाला कहा गया है और उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र दो तारा वाला कहा गया है ।। इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति दो पल्योपम कही गई है । दूसरी शर्कराप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति दो पल्योपम कही गई है । इसी दूसरी पृथ्वी में कितनेक नारकियों की स्थिति दो सागरोपम कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति दो पल्योपम कही गई है । असुरकुमारेन्द्रों को छोड़कर शेष भवनवासी देवों की उत्कृष्ट स्थिति कुछ कम दो पल्योपम कही गई है । असंख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक कितने ही जीवों की स्थिति दो पल्योपम कही गई है । असंख्यात वर्षायुष्क गर्भोपक्रान्तिक पंचेन्द्रिय संज्ञी कितनेक मनुष्यों की स्थिति दो पल्योपम कही गई है। सौधर्म कल्प में कितनेक देवों की स्थिति दो पल्योपम कही गई है । ईशान कल्प में कितनेक देवों की स्थिति दो पल्योपम कही गई है । सौधर्म कल्प में कितनेक देवों की उत्कृष्ट स्थिति दो सागरोपम कही गई है । ईशान कल्प में देवों की उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक दो सागरोपम कही गई है । सनत्कुमार कल्प में देवों की जघन्य स्थिति दो सागरोपम कही गई है । माहेन्द्रकल्प में देवों की जघन्य स्थिति कुछ अधिक दो सागरोपम कही गई है । जो देव शुभ, शुभकान्त, शुभवर्ण, शुभगन्ध, शुभलेश्य, शुभस्पर्शवाले सौधर्मावतंसक विशिष्ट विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति दो सागरोपम कही गई है । वे देव दो अर्धमासों में (एक मास में) आनप्राण या उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों के दो हजार वर्ष में आहार की इच्छा उत्पन्न होती है | कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो दो भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । समवाय-२ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (समवाय-३) [३] तीन दंड कहे गये हैं, जैसे-मनदंड, वचनदंड, कायदंड । तीन गुप्तियाँ कही गई हैं, जैसे–मनगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति । तीन शल्य कहे गए हैं, जैसे-मायाशल्य, निदानशल्य, मिथ्यादर्शन शल्य । तीन गौरव कहे गये हैं, जैसे---ऋद्विगौरख, रसगौरख, सातागौरव । तीन विराधना कही गई हैं, जैसे-ज्ञानविराधना, दर्शनविराधना, चारित्रविराधना । मृगशिर नक्षत्र तीन तारावाला कहा गया है | पुष्प नक्षत्र तीन तारावाला कहा गया है । ज्येष्ठा नक्षत्र तीन तारावाला कहा गया है । अभिजित् नक्षत्र तीन तारावाला कहा गया है । श्रवण नक्षत्र तीन तारावाला कहा गया है । अश्विनी नक्षत्र तीन तारावाला कहा गया
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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